तिरंगा - कविता - स्वाति कुमारी

घर-घर में तिरंगा हो,
छत-छत पे तिरंगा हो,
मंदिर भी नहीं छूटे,
मस्जिद पे तिरंगा हो।

मन में तिरंगा हो,
तन पे भी तिरंगा हो,
मज़हब से दूर होकर,
जन-जन पे तिरंगा हो।

मेरी शान तिरंगा हो,
मेरी आन तिरंगा हो,
दुनिया मुझे जाने ऐसे,
मेरी पहचान तिरंगा हो।

हैं कौन यहाँ ठहरा,
आया व गया एक दिन,
जब मैं जाऊँ इस दुनिया से,
मेरा कफ़न तिरंगा हो।

स्वाति कुमारी - छपरा (बिहार)

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