विरह - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

विरह के इस घड़ी में, 
रो-रो कर मैं जीता हूँ, 
याद तेरी जब आती है, 
अश्रु विष पीता हूँ। 

याद तेरी जब आती हैं, 
हृदय में पीड़ा होती है, 
मन करता है अब छोड़ दूँ दुनिया, 
मृत्यु ना मुझको आती है, 
कोई ना समझता है मुझको, 
तेरे बिन में कैसे जीता हूँ। 

याद तेरी जब आती हैं, 
अश्रु विष मैं पीता हूँ। 

याद तेरी जब आती हैं, 
कुछ ना मुझको भाता हैं, 
माँ कहती है बेटा– 
तू क्यों ना कुछ भी खाता है, 
अब कैसे कह दूँ मैं माँ से अपने, 
अब वियोग रस मैं पीता हूँ। 

याद तेरी जब आती है, 
अश्रू विष मैं पीता हूँ। 

बिछड़ना है अगर जीवन में, 
फिर क्यों मिलन हमारा होता है, 
कैसे समझाऊँ इस वियोगी हृदय को, 
हर पल अब जो रोता है, 
हर जन्म में मिलोगे हमसे तुम, 
यही आश लगाए जीता हूँ, 
याद तेरी जब आती है, 
अश्रु विष मैं पीता हूँ। 

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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