आज़ादी का अमृत महोत्सव - कविता - बृज उमराव

बीत चुके हैं वर्ष पचहत्तर,
बेड़ी कटी ग़ुलामी की।
वर्ष गाँठ हम सभी मनाएँ,
वतन की इस आज़ादी की॥

अनगिनत शहीदों को श्रद्धांजलि,
अर्पित देश यह करता है।
भारत की शान न कम होगी,
सपथ पत्र यह भरता है॥

देश ने उन्नति ख़ूब करी,
अभी बहुत कुछ करना है।
भेद भाव की मिटा लकीरें,
सबको आगे बढ़ना है॥

ऊँच नीच का भाव मिटे,
सम्मान सलामत सबका हो।
उल्लासित उत्साहित चेहरे,
रहमत सब पर रब का हो॥

समता सद्भाव का अभिकल्पन,
करना अब तक बाक़ी है।
सद्भाव प्रेम के मध्यान्तर,
कुछ समाज एकाकी है॥

कर्म, ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति,
उन्नति पथ पर रहें अग्रसर।
कोई हाथ न खाली हो,
सेवा के सबको हों अवसर॥

देश प्रेम, सद्भाव, समर्पण,
रोज़गार परक हो शिक्षा।
भ्रष्ट तंत्र का पूर्ण नाश,
की जाए सम्पूर्ण समीक्षा॥

शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा सुविधा,
सबको मिले उचित सम्मान।
आत्म निर्भर हो भारत अपना,
हर नागरिक करे अभिमान॥

करुणा, दया, ओर ममता,
समभाव की बहती हो गंगा।
सम्मान न होवे किसी का आहत,
लहराए सर्वदा तिरंगा॥

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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