संदेश
बारिश की भयावहता - कविता - मिथलेश वर्मा
बारिश की भयावहता उनसे पूछो, जब वर्षा जम के बरसती है। घासों के छप्पर से बूँदें, टप-टप कर टपकती है। बारिश उतनी भी सुंदर नहीं होती, जितनी…
दान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
युगों युगों से चली आ रही दान की परंम्पराओं का समय के साथ बदलाव भी दिखा। देने से अधिक दिखाने का प्रचलन बढ़ा। थोड़ा देकर अधिक प्रचार कर रह…
जीवन उत्कर्ष - कविता - प्रतिभा नायक
भरी दोपहरी में छाँव का अर्श, काँटों के बीच फूलों का स्पर्श। अँधेरी रात में चन्द्रमा का दर्श, जीवन में संघर्ष जीवन उत्कर्ष। निरन्तर चलत…
ख़्वाहिशें - कविता - अर्चना कोहली
उच्छल जलधि तरंग सी ख़्वाहिशें, नहीं है इस पर कोई भी बंदिशें। जीवन-रंगमंच पर फैले इसके पंख, अधूरी होने पर न करें कोई रंजिशें।। अंतर्मन म…
कि बादल बहुत आज छाए हुए हैं - ग़ज़ल - नागेन्द्र नाथ गुप्ता
कि बादल बहुत आज छाए हुए हैं, गली गाँव जल में समाए हुए हैं। बतख मोर चातक पपीहा पखेरु, धमाचौकड़ी सब मचाए हुए हैं। खड़े नीम पीपल बकुल मौन…
यादें - कविता - रमाकांत सोनी
बड़ी सुहानी लगती यादें, प्रेम भरी मनभावन सी। उर उमंग हिलोरे लेती, झड़ी बरसते सावन सी। सुख-दुख के मेंघ मँडराए, यादें बस रह जाती है। घ…
बचपन - कविता - उर्मि
बचपन मेरा बचपन! कितना सुंदर और प्यारा बचपन। कब आया, कब गया सपनों सा मानस पटल पर रह गया। लौटकर आओ ना मेरा प्यारा सा बचपन। वह माँ और…
कह रहे हैं केशव सुनो कर्ण - कविता - राघवेंद्र सिंह
महाभारत में कृष्ण और कर्ण संवाद का परिदृश्य दिखाती कविता। जब शुरू हुआ विध्वंश युद्ध, धरती कांँपी हुआ काल क्रुद्ध। बजा बिगुल भीषण रण का…
क्षमता - कविता - गोपाल मोहन मिश्र
शब्द ही सब कुछ है हर्ष-उल्लास, सुख-दुःख, व्यथा-कथा है अव्यक्त हर झाँकी में छिपा, समीप जाने से पहले ही दूर क्षितिज से नई राह खुल जाती ह…
ऐ मेरे दिल सुनो - गीत - आकाश 'अगम'
ऐ मेरे दिल सुनो सिर्फ़ दिल ही रहो, एक आघात से यूँ क़हर मत बनो। जो गिरा कर सिखाती नहीं कुछ मुझे, एक आघात से वो डगर मत बनो।। लोग तो ग़लतिया…
गुरु - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
अनमोल अनुभव जुड़ जाते हैं, गहन अध्ययन एवं संप्रीति से। फिर वही विद्वता साक्षात्कार कराती है हमें, हमारे उज्जवल भविष्य व उन्नति से।। …
काँधे पर चढ़ी धूप - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
पशु-पक्षी और पेड़ों ने जीवन में कितने रंग भरे। है दिवस के काँधे पर चढ़ी धूप। होगा सागर सरिताओं का भूप।। चलते हुए समीर में देखो अलमस…
सरस्वती वंदना - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
माँ तेरे पैरों पर, शब्दों का फूल चढ़ाता हूँ। तेरे सम्मुख, अपनी लेखनी अर्पित करता हूँ। ह्रदय से मैं तुझे, नमन बार-बार करता हूँ। अपने अ…
गिरती दीवारें - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
गिरती दीवारें और भी बहुत कुछ गिरा लाती हैं अपने साथ, सिर्फ़ मिट्टी और रेत के कण नहीं, जल के बूँद और लोहा भी नहीं, बल्कि उन मज़दूरों का …
मजबूरी - कविता - समय सिंह जौल
अपने हाथ में डंडी लिए चुंबक उसमें बाँध लिए ढूँढ़ रहा कूड़े में टुकड़े लोहे के जैसे मछुआरा जाल बिछाकर पानी में छोड़ता जाल बनाकर फँस…
कुछ पल तेरे संग - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
कुछ पल तेरे संग बिताएँ, स्वप्निल दुनिया साथ रचाएँ। जिए साथ हम बन हमजोली, नवजीवन आलोक जगाएँ। अन्तर्मन अवसाद भुलाएँ, बिम्बाधर मुस्कान ख…
प्रकृति - कविता - भुवनेश नौडियाल
प्रकृति है, अद्भुत, अनोखी, सुंदरी न्यारी, निर्झर बहती नदिया सारी। जिसमें रहते जीव अनोखें, प्रकृति में ही रहते मोहे। मनमोहक है, रूप नि…
मैं कैसे भूल जाऊँ? - कविता - अभिषेक द्विवेदी 'नीरज'
वो मेरा प्यारा सा गाँव, वो पेड़ों की ठन्डी छाँव, वो कलियाँ फूलों की, मस्तियाँ सावन की झूले की, मैं कैसे भूल जाऊँ? वो प्यारी सी डाँट नान…
पेड़ - कविता - गोपाल जी वर्मा
हरे पेड़, भरे पेड़, आँधी तूफ़ान से, लड़े पेड़। धूप में छाँव देने को, खड़े पेड़। फल-फूल देने के लिए, सजे पेड़। झूला झूलने के लिए, निभे पे…
विश्वकर्मा - कविता - रतन कुमार अगरवाला
जग का किया निर्माण जिन्होंने, करता हूँ मैं आज उन्हे प्रणाम। दुःख संसार के हर लिए जिन्होंने, सुखी वसुंधरा का किया निर्माण। विश्व निर्मा…
जय हो विश्वकर्मा भगवान की - कविता - अभिषेक विश्वकर्मा
बोलो जय विश्वकर्मा भगवान की, इस जगत के देव महान की, जय हो विश्वकर्मा भगवान की। इस सृष्टि के निर्माता तुम हो, हर विपदा से हमें उबारे, स…
नारी - गीतिका - अर्चना बाजपेयी
आँसू पीकर बनी सिंहनी, सदा पिलाया जग को क्षीर। बेचारी मत समझो मुझको, हूँ गुलाब पर देती चीर।। दिए राष्ट्र को भगत बटेश्वर, गाँधी और वीर आ…
पाँच दिनों का आगमन - लेख - अभिजीत कुमार सिंह
मैं कोई चिकित्सक नहीं हूँ ना ही मेरा दूर-दूर तक वैद्यक-संबंधित क्षेत्रों से नाता है किन्तु इस समाज का एक साधारण हिस्सा हूँ वो भी पुरुष…
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