नारी - गीतिका - अर्चना बाजपेयी

आँसू पीकर बनी सिंहनी, सदा पिलाया जग को क्षीर।
बेचारी मत समझो मुझको, हूँ गुलाब पर देती चीर।।

दिए राष्ट्र को भगत बटेश्वर, गाँधी और वीर आज़ाद,
मातृभूमि को सौंपे मैंने, बनकर पन्ना अपने हीर।।

तुमको देकर राज्य अयोध्या, बन वनदेवी जंगल बास।
कानन में भी उपजाए हैं, लवकुश समर बाँकुरे वीर।।

अंग्रेजों की नींव हिला दी, पकड़ी कर में जब तलवार।
आज़ादी जब तुम्हें मिली तो, झेली दुहिता कामुक तीर।।

प्रेमपाश में पड़कर तुमने, छोड़ा था जब मेरा साथ।
वीर शिवाजी गढ़कर मैंने, ध्वज लहराया था प्राचीर।।

तीन देव को गोद खिलाया, लिया सूर्य का रथ भी रोक।
किया पराजित काल चक्र को, हारे यम बदली तक़दीर।।

सौम्य रूप से जग रचने दो, नहीं जगाओ अंतर ज्वाल।
पल भर में ये हिल जाएगा, धरती अम्बर और समीर।।

नेह सुधा से सींच रही हूँ, विविध रूप में हो साकार।
घर संसार फले औ फूले, चुन ली मैंने सारी पीर।।

अर्चना बाजपेयी - हरदोई (उत्तर प्रदेश)

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