पेड़ - कविता - गोपाल जी वर्मा

हरे पेड़,
भरे पेड़,
आँधी तूफ़ान से,
लड़े पेड़।
धूप में छाँव देने को,
खड़े पेड़।
फल-फूल देने के लिए,
सजे पेड़।
झूला झूलने के लिए,
निभे पेड़।
खिड़कियों, दरवाज़ों के लिए,
कट पड़े पेड़।
मरने के बाद हमें
जलाने को भी,
तैयार खड़े पेड़।
इतना बतला दो हमें कोई
हम पेड़ के 
किस काम आए परस्पर?
सजे पेड़, झुके पेड़, खिले पेड़,
हम कहाँ रहे?

गोपाल जी वर्मा - कदम कुआँ, पटना (बिहार)

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