संदेश
स्मृतियाँ - कविता - प्रवीन "पथिक"
जब पहली बार ज़िन्दगी में आए थे; सबको खोकर तुझको पाए थे। मन की इच्छा शेष नहीं थी, ज़िन्दगी की पहली खुशी मनाए थे। तेरे शुभ्र भाल प…
तुमको निगाहें ढूंढ़ रही हैं - गीत - अशोक योगी "शास्त्री"
झिर मिर झिर मिर मेहा बरसे पागल मनवा मिलन को तरसे मन चंचल चित चोर हुआ है छोड़ गए हो तन्हा जबसे। बंद हुआ चिड़ियों का चहकना छोड़ …
स्त्री - कविता - प्रमोद कुमार "बन्टू"
रिस्ते नाते जितने होते, सबका मान वो रखती है। अंगारों पर खुद वो चलती, अपनी पहचान वो रखती हैं। नन्हें - नन्हें पाँव से चलती, नन्…
योग - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
योग रखता है निरोग स्वस्थ तन मन भागता है रोग। प्रकृति का अनूठा वरदान मांगता बस समय कि दान। इस अनुपम उपहार का हम करते यदि उपयोग धन बचता,…
पहचान - ग़ज़ल - सलिल सरोज
हर बात पे यूँ हंगामा नहीं किया जाता प्यास लगने पे समंदर नहीं पिया जाता बात जिन्दगी की है, सोचना पड़ता है बेटियों का हाथ यूँ ही नहीं द…
तुम हो ना - ग़ज़ल - अंकित राज
मुझे देख कर बैठ गऐ हो.....हो ना मुझे मुसलसल देख रहे हो.....हो ना मांग रहे हो रुख़्सत और ख़ुद ही! हाथ मे हाथ लिये बैठे हो.....हो ना दे…
वतन मेरा - कविता - विनोद निराश
वतन मेरा प्यारा, हिन्दुस्तान है , यही मेरा मान, यही अभिमान है। गोद में खेले है जिस, मिटटी की, वही आज हमारी देखो पहचान है। ऊँचा हि…
कागज़ कलम दवात - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
स्मृति के पन्नों पर आज विदित, जिंदगी कागज कलम दवात। हाथ रंगे काली स्याही से, गगन घनघोर घटा बरसात। बम…
सहरा (जंगल) - कविता - सुनीता रानी राठौर
आधुनिकीकरण में कटता सहरा, जीव-जंतुओं का उजड़ता आसरा। भटकते पशु पहुंचते शहर गांव में, ढूंढते अपना भोजन घर-आसरा। नगरीय विकास में…
वो भिखारन - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
हाँ वो भिखारन फैलाये थी हाथ, कुछ बहाने झूठे थे अपंगता भी झूठी थी मगर सच्चे थे जज्बात, थी बस भूख में सच्चाई पथराई आँखों में …
विश्वास - कविता - संजय राजभर "समित"
विश्वास एक मजबूत छत है पग-पग पर पनपती संशय से बचा लेता है, एक सामंजस्य है जो कठिन परिस्थितियों में भी विचलित होने से रोकत…
अंदाज ए नसीहत - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
सरहद पे आना जाना हो जाएगा। तो दुश्मन से याराना हो जाएगा। ना रहेंगी रंजिशे, मिलके रहेंगे। जहां में अफसाना हो जाएगा। एक डाल पे ख…
दिन गुजर गया - कविता - सांवलाराम देवासी
दिन गुजर गया कैसे हाथों से रेत फ़िसलती हैं जैसे आठ पहरों का दिन गुजरा एक क्षण भर में जैसे दिन गुजर गया कैसे हवा का झोंका भर था …
प्रेम परिधि - कविता - आलोक कौशिक
बिंदु और रेखा में परस्पर आकर्षण हुआ तत्पश्चात् आकर्षण प्रेम में परिणत धीरे-धीरे रेखा की लंबाई बढ़ती गई और वह वृत्त में रूपांतर…
विश्वकर्मा भगवान - कविता - अंकुर सिंह
तकनीकी कला के ज्ञाता, देवालय, शिवालय के विज्ञाता। सत्रह सितम्बर हैं जन्म दिवस, कहलाते शिल्पकला के प्रज्ञाता।। कला कौशल में निपु…
सच्ची श्राद्ध - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जीते जी सेवा किया नहीं, बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं। ऐसी संताने हैं कुल कलंक, मृत पुरखों को बहलाते हैं। यदि देनी सच्ची श्रद्…
अनकही बातें - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अनकहीं बातें बहुत जिंदगी के, अन्तर्द्वन्द्व बहुतेरे अन्तस्थल छिपे, अवसीदना दर्द ए हाल जमाने के, कचोटती कुरेदती चोटिल चिथेड़े, …
शिक्षक होना सरल नहीं - कविता - रवि शंकर साह
मैं एक शिक्षक हूँ। दुनिया को देता हूँ ज्ञान। अज्ञानता को दूर भगाना शिक्षा का अलख जगाना यही मेरा एकमात्र काम । इसके बदले लेता नह…
रोशनदान - कविता - मनोज यादव
खुली किताब से धूल झाड़ लो तो पूछो नई सुबह का आगाज देख लो तो पूछो। कही कुछ भूल तो नही गये हो घबराहट में तुम जरा भूल को सुधार लो तो …
वक्त सुन कुछ बोलता है - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी
हर कदम निर्भय बढ़ाना दृष्टि मंजिल पर गड़ाना, राह की उलझन अमित से मन विकल क्यों डोलता है? वक्त सुन कुछ बोलता है। …
हम तेरे नाम हैं - गीत - चन्द्र प्रकाश गौतम
तुम भी बदनाम हो, हम भी बदनाम हैं इश्क की डगर में, सरेआम हैं एनंटिंरोमिओ लगे या, धारा कोई हम तेरे…
तन्हा हो गया था मैं - नज़्म - रोहित गुस्ताख़
मुहब्बत याद रखना महबूब को भूल जाना पंखे को डाँटना फ़ोटो पर चिल्लाना. तन्हा हो गया था मैं.... रोज़ नशे में डूबना, सिगरेट जलाके ब…
मेरा न यूँ दिल तोड़ना था - मुक्तक - राहुल सिंह "शाहावादी"
हर किस्म का तुम सनम, इल्जाम मुझपर थोप देते। पर वफा करके मेरे संग, तुमको न ऐसे छोड़ना था। प्यार में जो मांग लेते,…
हिन्दी हमारी शान - आलेख - सुनीता रानी राठौर
हिन्दी हिंदुस्तान की आन बान शान है। प्रतिष्ठा और सम्मान है। यह 18 भाषाओं को समग्रता में समेटती है। हमारी हिन्दी भाषा मधुर, मृदुल और…
नव हिन्दी नव सर्जना - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सुन्दर सुखद प्रभात है, राम राम सुखधाम। हिन्दीमय सारे जहां, भारत है अभिराम।।१ प्रमुदित है संस्कृत सुता, पुण्य दिवस पर आज। हिन्दी…
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