वक्त सुन कुछ बोलता है - कविता - अनिल मिश्र प्रहरी

हर  कदम  निर्भय   बढ़ाना 
दृष्टि  मंजिल   पर   गड़ाना, 
राह की उलझन अमित  से
मन विकल क्यों डोलता है? 
वक्त  सुन  कुछ  बोलता है। 

बीच   नद    तूफान   आये 
शत्रु  असि कर  तान आये,
विघ्न आ पथ में मनुज  के
धैर्य- बल  को  तौलता   है। 
वक्त सुन कुछ बोलता   है। 

छुट  गया जो  भी  रुका  है 
हार   विपदा  से   झुका  है, 
यह  धरा  उसकी  नहीं  जो
अश्रु  में   तन  घोलता   है। 
वक्त  सुन कुछ  बोलता  है। 

शान्त अम्बुधि का किनारा 
शान्त,  नीरव   नीर - धारा, 
ज्वार   की   बेचैनियों    में
भी  न  सागर  खौलता   है। 
वक्त सुन  कुछ बोलता   है। 

अनिल मिश्र प्रहरी - पटना (बिहार)

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