सच्ची श्राद्ध - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

जीते जी सेवा किया नहीं,
बस मरने पर श्राद्ध मनाते हैं।

ऐसी संताने हैं कुल कलंक,
मृत पुरखों को  बहलाते हैं।

यदि देनी सच्ची श्रद्धांजलि,
है प्यारे पुरखों  को अपने।

तब धर्म करो सत्कर्म करो,
अरु पूर्ण करो उनके सपने।

यह वन्दन है अभिनंदन है,
यह ही पुरखों का है तर्पण।

उनकी स्मृतियों को हृदय लगा,
श्रद्धा के सुमन करो अर्पण।

तब पूर्वज भी होंगे प्रसन्न,
पा  सच्चे प्रेम समर्पण को।

नित  देंगे  ढेरों  शुभाशीष,
फिर देख प्रेम शुचि अर्पण को।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos