रोशनदान - कविता - मनोज यादव

खुली किताब से धूल झाड़ लो तो पूछो
नई सुबह का आगाज देख लो तो पूछो।
कही कुछ भूल तो नही गये हो घबराहट में तुम
जरा भूल को सुधार लो तो पूछो।।

नही जिद मेरी तुम्हे मनाने  की,
ना ही ये जिद तुम्हे समझने और समझाने कि।
बस प्रयास है रोशनी से रूबरू हो जाओ तुम
जरा खिड़कियां खोल लो, तो पूछो।।

कही छूटा हुआ सपना, छूटा न रह जाये
कही रूठा हुआ अपना, रूठा न रह जाये।
दिल की बेचैनी पर एक तंज खुद कसो तुम
फिर हौले से किवाड़ खोल लो, तो पूछो।।

कोई दस्तक देता है तो उसे आने को कहो
खैरियत पूछो और बैठ जाने को कहो।
रौशनी मुकम्मल दोनों तरफ से आएगी
जरा  दोनों तरफ के रोशनदान खोल लो, तो पूछो।।

मनोज यादव - मजिदहां, समूदपुर, चंदौली (उत्तर प्रदेश)

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