दिन गुजर गया - कविता - सांवलाराम देवासी

दिन गुजर गया कैसे
हाथों से रेत फ़िसलती हैं जैसे
आठ पहरों का दिन गुजरा
एक क्षण भर में जैसे

दिन गुजर गया कैसे
हवा का झोंका भर था जैसे
सूर्य उदय होते देखकर गया था काम पर
फुर्सत से देखा तो रात ही थी जैसे

सांवलाराम देवासी - जालौर (राजस्थान)

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