अंदाज ए नसीहत - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"

सरहद पे आना जाना हो जाएगा।
तो दुश्मन से याराना हो जाएगा।

ना रहेंगी रंजिशे, मिलके रहेंगे।
जहां में अफसाना हो जाएगा।

एक डाल पे खिले, दो गुलाब जैसे,
गुलिस्तां एक नज़राना हो जाएगा।

मिलते रहें आशिकों कि तरह तो,
ये दिल  आशिकाना हो जाएगा।

दिल्लगी से कोई यूं नाराज न होना,
गैरों को  एक,  बहाना  हो जाएगा।

गले ही नहीं दिल से दिल भी मिले,
अजनबी से  दोस्ताना हो जाएगा।

जबतक हैं जिंदा, जिंदादिल रहना,
कल को सब अनजाना हो जाएगा।

महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)

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