विश्वकर्मा भगवान - कविता - अंकुर सिंह

तकनीकी कला के ज्ञाता,
देवालय, शिवालय के विज्ञाता।
सत्रह सितम्बर हैं जन्म दिवस,
कहलाते शिल्पकला के प्रज्ञाता।।

कला कौशल में निपुण,
बनाए सोने की लंका,
विश्वकर्मा भगवान तो है,
सभी देवों के अभियंता।।

शिल्प कला के है जो ज्ञाता,
विष्णु वैकुंठ के हैं निर्माता।
कहते हम प्रभु दो हमको ज्ञान,
क्योंकि हमें कुछ भी नहीं आता।।

पृथ्वी, स्वर्ग लोक के भवन बनाए,
विष्णु चक्र, शिव त्रिशूल तुम्हीं से पाए।
सब देवन पर किए कृपा आप भारी, 
पुष्पक दें कुबेर को किए विमान धारी।।

इंद्रपुरी, कुबेरपुरी और यमपूरी बनाए,
द्वारिका बसा कृष्ण के प्रिय कहलाएं।
तुम्हारे बनाए कुंडल को धारण कर,
दानी कर्ण कुंडल धारक कहलाए।।

विश्वकर्मा जी है पंच मुख धारी
करते है हंस की सवारी,
तीनों लोक, चौदहों भुवन में,
सब करते उनकी जय जयकारी।।

मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी, दैवज्ञा पुत्र तुम्हारे,
पधार संग इनके प्रभु आज द्वार हमारे।
महर्षि प्रभास, देवी वरस्त्री के सुत आप,
आए हरो प्रभु अब, कष्ट सब हमारे।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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