संदेश
मैं ममता हूँ (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(४) कहती है ममता अपनी कथा निराली है। यूँ मन से जल्दी वह न निकलने वाली है। समय मिले तो इतिहास कभी खंगालो तुम। हुई नहीं किसी काल में भी …
सदाचारी को मिलता है सम्मान - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
यह नितांत सत्य है कि सदाचार ही मानवता है। परन्तु दुःख की बात यह है कि आज वातावरण बहुत दूषित हो गया है। अनीश्वरवाद व हिंसा तथा गंदी फिल…
प्यासा - कविता - विनय "विनम्र"
सब कुछ सहज उपलब्ध था ज़ेहन में कुछ थी ढूंढ पर आँख बिल्कुल उदास थी शायद यहीं प्यास थी? हर वक़्त को जज़्बात से बस खोजने की चाह आह अपनी कुछ …
धन्य हे उपवन - कविता - प्रवीन "पथिक"
माफ़ करना तू हे उपवन! तुझको कितना ठुकराया था। तेरा बसना-वसंत छोड़, पतझड़ को ही अपनाया था। इसमें न कोई मेरा क़सूर, दुनिया का दस्तू…
प्रतिशोध अपराध का जन्मदाता - लेख - शिव शिल्पी
आधुनिक समय में व्यक्तियों में निकटता बढ़ती जा रही है और यह निकटता मित्रता तथा प्रेम सम्बन्धों के रूप में दिखाई पड़ती है। जो कि सकारात्…
ये रिवाज़ उनका आम हो गया - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
किसी से वादे किसी के हमदम होना, ये रिवाज़ उनका आम हो गया, किसी से हँसना किसी के ग़म का इज़हार करना हर मनचलो की जिव्हा पर तेरा नाम हो गय…
मैं ममता हूँ (भाग ३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३) हर युग में मैं अवतरण धरा पे लेती हूँ। मातृ रूप धारण कर कर्त्तव्य निभाती हूँ। मैं रचती हूँ नव कथा-कहानी इस जग में, स्नेह-दीप बनकर ज…
मेहनत के साथ स्मार्ट वर्क ज़रूरी - लेख - सुनील माहेश्वरी
दोस्तों यह बहुत ही अच्छा और उचित सवाल है कि मेहनत तो हम बहुत करते हैं, लेकिन हमें मन मुताबिक़ सफलता का परिणाम हासिल नहीं होता। क्योंकि …
धर्म और संस्कृति - कविता - बोधिसत्व कस्तूरिया
आज धर्म धरा से छूट गया! संस्कृति का दामन छूट गया!! नारी अबला से सबला बनी! अन्नपूर्णा का भ्रम टूट गया!! रोटी-बेलन छोड ब्रैड-बटर पिज्जा-…
मज़दूर - कविता - तेज देवांगन
हाँ मैं मज़दूर हूँ, बेबसी और लाचारी से मजबूर हूँ। हाँ मैं मज़दूर हूँ, छल प्रपंच मुझे नहीं आते, सीधा सुगम हम राह बनाते। करते नहीं कोई बुर…
यह भारत की नारी है - कविता - आशाराम मीणा
हमने तो शुरुआत कर दी अब आपकी बारी है। लिए तिरंगा चल पड़ी है यह भारत की नारी है।। अपने हक़ को लेकर रहेगी मजहब मे चिंगारी है। खूब सुना है…
दीदार ए लखनऊ - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
लखनऊ की फ़िज़ा का अपना ही रंग है, सारे जहां को खुशबू ये गुलाब ही पसंद है। अपना लहज़ा अपनी नज़ाकत में ए लखनऊ, मुझे तेरा पहले आप का मेहम…
अच्छा लगता है - कविता - अमित अग्रवाल
यूँ तो सब कहते है बहुत समझदार हूँ मैं, पर किसी से पागल हो कहलाना अच्छा लगता है। परवाह तो सबकी ख़ुद से ज़्यादा कर लेता हूँ मैं, पर किसी क…
पत्थर में भगवान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
ये महज़ विश्वास है कि पत्थर में भगवान है, परंतु यही विश्वास हमें बताता भी है भगवान कहाँ है? तभी तो हम मंदिर, मस्जिद गिरिजा, गुरुद्वारों…
मैं ममता हूँ (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) ममता कहती मैं नारी हूँ मातृ-स्वरूपा। हूँ परिभाषा हीन सुसज्जित शब्द अनूपा। मैं हूँ संतति की अंतस संस्कार वाहिनी। वात्सल्य स्नेह अरु…
मौन बयाँ करती कशिश - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
प्रमुदित होती दिलकशी, साजन प्रति अनुराग। मौन बयाँ करती कशिश, दिल में जलती आग।।१।। मदमाती तनु चारुतम, कामुकता उद्रेक। प्रेम हृदय…
सपनों की कहानी - कविता - वैभव गिरि
मानव जीवन चंचल मन है, ख़ुद को यूँ ही छलता है। जैसे बारिश की बूंदे झम झम कर, धरती पर अविरल बहता है। बहते पानी के लहरों से, सारे अरमां ब…
परिंदा हूँ मैं आवारा - ग़ज़ल - मनजीत भोला
कभी मस्जिद ठिकाना है कभी मन्दिर दीवाने का, परिंदा हूँ मैं आवारा ज़िक्र क्या अब ज़माने का। फलक की सरहदों को मैं कसम से तोड़ आया हूँ, मग…
आईना - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
अरे! निर्मल ही तो हूँ मैं, भला अब मुझे कोई क्या निर्मल करेगा। निर्मल को निर्मला कर देने भर से भला क्या कोई तरेगा? अरे! अबल ही तो हूँ…
महँग हो जाई एक दिन - भोजपुरी कविता - डॉ. कुमार विनोद
नईखे बुझात त छोड़ि दि। इ तिरंगा ह चुनाव में पायेट भा झोरा सियाये वाला झंडा ना ह। उल्टा -सीधा जनि फहरायी। रहे दी! रउवाँ एकर मरम ना जा…
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