मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
परिंदा हूँ मैं आवारा - ग़ज़ल - मनजीत भोला
शुक्रवार, जनवरी 29, 2021
कभी मस्जिद ठिकाना है कभी मन्दिर दीवाने का,
परिंदा हूँ मैं आवारा ज़िक्र क्या अब ज़माने का।
फलक की सरहदों को मैं कसम से तोड़ आया हूँ,
मगर न हौसला मुझमें शज़र को आजमाने का।
हवा के साथ में चलना तेरी फितरत सही लेकिन,
दिया है हक़ तुझे किसने चरागों को बुझाने का।
गया भर पेट उसका तो हमें वो मारने निकला,
मिला है ये सिला हमको यहाँ रोटी उगाने का।
नहीं क़ाबिल वो इतना भी के उसको लानतें भेजें,
ख़्वाहिश मंद है लेकिन वो हमारी दाद पाने का।
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