लखनऊ की फ़िज़ा का
अपना ही रंग है,
सारे जहां को खुशबू
ये गुलाब ही पसंद है।
अपना लहज़ा अपनी
नज़ाकत में ए लखनऊ,
मुझे तेरा पहले आप का
मेहमानी ढंग ही पसंद है।
फिर चौक का मक्खन
सुनारी गोल दरवाजा,
भूलो की भूलभुलैया में
लखनऊ तेरा दीदार
मुझे आज भी पसंद है।
कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)