प्यासा - कविता - विनय "विनम्र"

सब कुछ सहज उपलब्ध था
ज़ेहन में कुछ थी ढूंढ
पर आँख बिल्कुल उदास थी
शायद यहीं प्यास थी?
हर वक़्त को जज़्बात से
बस खोजने की चाह
आह अपनी कुछ नहीं
थी पराई आह
बातें वहीं सामान्य सी
पर चेहरे की रंगत उदास थी
शायद यहीं प्यास थी?
काल आया मर गया?
कुछ प्रश्न वो हल कर गया
संदेश देकर जा रहा 
दुनियाँ को बस बतला रहा 
आज की ये हंसी जो है
कल भी उदास थी
शायद यहीं प्यास थी
हाँ! शायद यहीं प्यास थी?
कहना था उसका बस यहीं
दुनियाँ अगर मिल जाए तो क्या?
छूटते कंकाल तक
कुछ हल नहीं हो पाएगा?
क़ब्र तक सिमटे वजूद को
ध्यान से तुम देख लो
हाथ में मिट्टी अगर हो
एक मुट्ठी फेंक दो,
कुछ नहीं जाता वहाँ
सब कुछ वहीं से आ रहा है
असलियत वो जानता था
मन इसीलिए उदास था,
हाँ शायद यहीं प्यास थी?

विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)

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