धर्म और संस्कृति - कविता - बोधिसत्व कस्तूरिया

आज धर्म धरा से छूट गया!
संस्कृति का दामन छूट गया!!
नारी अबला से सबला बनी!
अन्नपूर्णा का भ्रम टूट गया!!
रोटी-बेलन छोड ब्रैड-बटर
पिज्जा-बर्गर, मोमो हूट गया!!
गायन वादन नृत्य कक्षा बंद,
संगीत प्रशिक्षण छूट गया!!
फिर क्यों संताप ग्रसित हो?
संयुक्त परिवार ही टूट गया!!
वैवाहिक बंधन सात जन्मों का
सात दिनों मे ही टूट गया!!
पूछो उस बाबुल से कन्यादान
भरम पल भर मे फूट गया!!

बोधिसत्व कस्तूरिया - आगरा (उत्तर प्रदेश)

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