महँग हो जाई एक दिन - भोजपुरी कविता - डॉ. कुमार विनोद

नईखे बुझात त छोड़ि दि। 
इ तिरंगा ह 
चुनाव में पायेट भा झोरा सियाये वाला झंडा ना ह।
उल्टा -सीधा जनि फहरायी।
रहे दी!
रउवाँ एकर मरम ना जानब।
देखब ना! आंधी-तूफान के ख़िलाफ़ 
इ खुदे फहरि जायी।
तिरंगा त आकाश में फहरेला 
बाकि
खम्भा काहे जमीन में गाड़ल जाला।
जान तानि
काहे कि पाताल से लेके आकाश तक सगरो हमरे ह।
इहे संपूर्ण आजादी के पहिचान ह, संप्रभुता के जान ह,
हमार देश के संविधान ह।
आज हम धाधातानी, उतरातानी, अगरातानि।
आज़ादी मिलला पर हमारा देश बहुत तरक्की कइलस।
एमें कउनों शक़ सुबहा नइखें  कि जहवाँ  सुई ना बनत रहे,
उहवाँ कल कारखाना चलत बा।
इ वैज्ञानिकन, इंजीनियर आ किसानन के
धरम आ ईमान ह
ना त लोकतंत्र के पहरुवन के देखते बानी।
लक्ष्मीबाई से चलिके फूलन देवी तक आ गइनी इहा सभने।
सजाव दही अस
जमल कहतरी में से सांसद, विधायक निधिके खखोर-खखोर के 
द्दूटि के खात बानि इहा सबने।
वाह रे! हमनी के लाचारी
सचहू! एतना ना फइलल रहित
भ्रष्टाचार, भूख
और बेरोज़गारी।
आज़ादी के शहीद सपनों में ना सोचले होइहे कि 
सोना के चिरई 
कहावे वाला देश में 
अपना भूखल जिदियाइल बेटी के ख़ातिर 
तावा पर पकवे ख़ातिर
एगो आटा के चिरइयों 
ख़ातिर
महँग हो जायी
इ देश ! एक दिन।

डॉ. कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos