किसी से वादे
किसी के
हमदम होना,
ये रिवाज़
उनका आम
हो गया,
किसी से हँसना
किसी के ग़म का
इज़हार करना
हर मनचलो की
जिव्हा पर तेरा
नाम हो गया।
एक नायक के
प्यार की
लालसा ने ऐसा उसे अँधा बनाया,
अच्छा बुरा न सोच पाया
जा कर
उस रमणी से
कन्धा मिलाया।
उसकी बातों में
आकर
करने लगा
गुप्तगू और
छा गया बनकर
परवाना,
लगा देखने
वादों यादों के
मेले और
आने लगा
उसके दिल पर
बनाकर बहाना।
उसको
दिखावा के लिए
हो गई उसकी मासूका
किंतु
शमा न
बन पाई,
नायक ने असीम
चाहत
उसकी छिपाई।
पर वह
दिलो दिमाग में
कटारी वन समाई।
नायिका
मनचले
दीवाने में
डूबी
और उधर नायक का
जीना हराम
हो गया,
किसी से वादे
किसी के
हमदम होना
ये रिवाज़
उनका
आम हो गया।
रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)