अमित अग्रवाल - जयपुर (राजस्थान)
अच्छा लगता है - कविता - अमित अग्रवाल
शनिवार, जनवरी 30, 2021
यूँ तो सब कहते है बहुत समझदार हूँ मैं,
पर किसी से पागल हो कहलाना अच्छा लगता है।
परवाह तो सबकी ख़ुद से ज़्यादा कर लेता हूँ मैं,
पर किसी की परवाह पाने के ख़ातिर ख़ुद लापरवाह बन जाना अच्छा लगता है।
ऐसे तो शख्शियत गंभीर मालूम पड़ती है मेरी,
पर किसी की याद मैं मन्द मन्द मुस्कुराना अच्छा लगता है।
हाँ जानता हूँ दुनिया बहुत बड़ी है,
पर किसी की ख़ातिर पूरी दुनिया मैं ही बन जाना अच्छा लगता है।
लोगो को ज़िन्दगी से शिकायतें बहुत सी है,
पर मुझे तो किसी का बच्चो की तरह ज़िद पर अड़ जाना अच्छा लगता है।
यूँ चाहा तो हरदम बहुत कुछ ईश्वर से,
पर किसी को पाकर भी उसी को चाहना अच्छा लगता है।
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