यह भारत की नारी है - कविता - आशाराम मीणा

हमने तो शुरुआत कर दी अब आपकी बारी है।
लिए तिरंगा चल पड़ी है यह भारत की नारी है।।
अपने हक़ को लेकर रहेगी मजहब मे चिंगारी है।
खूब सुना है अबला ने अब नहीं सुनने वाली है।।
इतिहास बदला है जब नारी ने कमान संभाली है।
लिए तिरंगा चल पड़ी है यह भारत की नारी है।।

कितना दर्द सहा है उसने इन सियासी सदनों में।
झुकना पड़ेगा सत्ता के रावण को तेरे कदमों में।।
नव कलियों को नोचते हो दरिंदों गली मोहल्लों में।
अपना रस्ता खुद चुनेगी झाँसी के पद चिन्हों में।।
पुरुष प्रधान समाज में अब मातृत्व की तैयारी है।
लिए तिरंगा चल पड़ी है यह भारत की नारी है।।

पैर की जूती समझने वालों को सबक सिखाना है।
नारी नर से कम नहीं है सबको है दिखाना है।।
मेरे हक़ के ओहदों से गीदड़ों को दूर भगाना है।
संसद के सदनों में बहनों अब तुमको जाना है।।
रखो हौसला ख़ुद पर तुम सबमें बल धारी है।
लिए तिरंगा चल पड़ी है यह भारत की नारी है।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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