मुहब्बत एक-तरफ़ा थी - नज़्म - प्रशान्त 'अरहत'

बहुत बरसों बरस पहले
मेरे कॉलेज कि इक लड़की
हमारे पास आई थी
मेरा बस नाम पूछा था।
मैं ठहरा गाँव का लड़का
उसे फिर आँख भर देखा
बहुत नादान दिखती थी
तभी मैं दिल लुटा बैठा।

मुहब्बत एक-तरफ़ा थी।

हमारी क्लास में भी वो
हमारे साथ रहती थी
बहुत तहज़ीब थी उसमें
बहुत प्यारा था लहज़ा भी।
रवायत को निभाती थी
वो खाँटी लखनवी लड़की
उसी की इन अदाओं पर
तभी मैं दिल लूटा बैठा।

मुहब्बत एक-तरफ़ा थी।

कभी हम साथ में खाना
कभी हम चाय पीते थे
पढ़ाई में वो अव्वल थी
मैं दोनों मामलों में था।
मुझे बातें सभी उसकी
अभी तक याद आती हैं
तभी तारीफ़ करता हूँ
तभी मैं दिल लुटा बैठा।

मुहब्बत एक-तरफ़ा थी।

"मेरी मम्मी भी कहती हैं
सलीक़ा-मंद है लड़की
दुआ पूरी ये हो जाए
बने मेरी बहू छुटकी।"
कोई है चीज़ कुदरत की 
मिलाती है मुझे उससे
हुआ संयोगवश मिलना
तभी मैं दिल लुटा बैठा।

मुहब्बत एक-तरफ़ा थी।


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