बुझते चराग़ों को शरारा मिल गया,
ज़िन्दगी को जैसे गुज़ारा मिल गया।
डूबना अभी बाकी है उनकी मुहब्बत में,
झील सी आँखों से इशारा मिल गया।
कब से क़फ़स में थे ख़्यालों के परिंदें,
आसमाँ उनको भी सारा मिल गया।
वक़्त का भंवर बहाके ले जा रहा था हमें,
डूबते तिनके को किनारा मिल गया।
साबित कर दूँगा मैं ख़ुद को ऐ निर्मोही,
जीने का मौका दोबारा मिल गया।
श्याम निर्मोही - बीकानेर (राजस्थान)