संदेश
साथ-साथ हैं - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दीपू एक ऐसा बालक था जो सेठ मानिकचन्द अग्रवाल को वर्षो पूर्व सड़क पर लावारिस और विकल अवस्था रोता बिलखता मिला था। तब उसकी आयु लगभग पाँच छ…
सुनो ना - लघुकथा - ज्योति सिन्हा
"सुनो ना... कुछ कहना है तुमसे" बोल कर, स्वाति अजय के पीछे चल पड़ी। अजय ने कहा - क्या है, ऐसे कैसे चलेगा हर वक़्त तुम्हारे दिम…
कोख का बँटवारा - लघुकथा - अंकुर सिंह
रामनारायण के दो बेटों का नाम रमेश और सुरेश है। युवा अवस्था में रामनारायण के मृत्यु होने के बाद उनकी पत्नी रमादेवी ने रामनारायण के जमा-…
अल्हड़ बारात - लघुकथा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मोहन बहुत ही मेधावी छात्र था। उच्चतम शैक्षणिक सफलता के बाद भी उसे योग्यतानुसार जीविका न मिल सकी। परिवार की स्थिति दयनीय और बड़े परिवार …
सदा सुखी रहो बेटा - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
रिटायर्ड इनकम टैक्स ऑफिसर कृष्ण नारायण पांडे आज अपनी आलीशान कोठी में बहुत मायूसी महसूस कर रहे थे, क्योंकि उनकी दो हफ़्ते से बीमार पत्नी…
शिक्षा का मंदिर - लघुकथा - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
जय प्रकाश कोई बीस साल बाद गाँव लौटा तो उसके क़दम अनायास की गाँव से सटे जँगल की और बढ़ गए जहाँ एक दूर तक फैला हुआ आश्रम था। आश्रम के मुख्…
निरपेक्ष - लघुकथा - ममता शर्मा "अंचल"
अब क्या लिखा है पत्र में तेरी मैम ने? ओह! पत्र नहीं मैसेज में? पत्रों के ज़माने अब कहाँ रहे! मैसेज आते-जाते हैं अब तो मोबाइलों में। मुझ…
ख़ामोशी - लघुकथा - सुधीर श्रीवास्तव
आज आप सुबह से बहुत चुपचाप हैं। क्या बात है? तबियत तो ठीक है न? रमा ने अपने पति राज से पूछा। राज बोले- नहीं लखन की माँ। बस किसी निर्णय …
पुलिस वाली - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ख़ूबसूरत सुधा गली से तेज़ क़दमों से शाम के करीब छह बजे गुज़र रही थी, वह नीले रंग का सादा सा सूट पहने काफी ख़ूबसूरत नज़र आ रही थी। अचानक दो श…
होनहार हिमांशी - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कहते हैं "होनहार बिरवान के होत चीकने पात"। हिमांशी बहुत ग़रीब और अशिक्षित परिवार की बच्ची थी।विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उस…
दोष - लघुकथा - श्रवण निर्वाण
"मेरे में कितने ग्राम खून है" सरला ने सहज भाव से मुझसे पूछी। मैंने हाथ में रिपोर्ट थमा दी और कहा आप उस कमरे में डॉक्टर को दि…
बेमिसाल सूर्या और परमाल - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
चित्तौड़गढ़ के राजा दाहिर सेन अत्यंत पराक्रमी एवं प्रजा पालक थे। वह दो वीरांगना अति सुन्दरी पुत्रियों सूर्या और परमाल व एक 12 वर्षीय प…
ईश्वर की चाह - लघुकथा - गोपाल मोहन मिश्र
अपने गुरु के पास जाकर वो बार-बार पूछता - गुरुदेव मुझे भगवान की प्राप्ति कैसे होगी? मुझे ईश्वर के दर्शन कब होंगे? गुरु उसे बार-बार समझा…
स्वर्णभूमि - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
अबकी बार फूलमती के खेत में गेहूँ की लहलहाती फ़सल पूरे वातावरण को सुगंधित कर रही थी, क्योंकि तराई में बसे गाँव भीखमपुर की विधवा फूलमती न…
संविदा शिक्षक का दर्द - लघुकथा - शमा परवीन
मास्टर साहब हमारा बक़ाया कब दोगे? भाई दे दूँगा तनख्वाह आने दो। अगर आप हमारे मुन्ने को कुछ दिन पढ़ाये ना होते तो कसम से हम अपना पैसा आज …
स्मृति के झरोखे से - लघुकथा - रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि"
शादी के बारह वर्ष बाद पति और बच्चों के साथ पहली बार होली मनाने मामा के घर आई रमा की नज़र एक खिड़की पर जा टिकी और अतीत की खुशनुमा स्मृति…
उपकार - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
लॉकडाउन में परदेस में फँसे राजू रिक्शा वाले के पास घर वापसी के पैसे भी ना थे ऊपर से उसका घर वहाँ से पूरे 400 किलोमीटर दूर था। बेचारा भ…
होली के रँगों जैसी - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
इस बार की होली नई नवेली दुल्हन हीरा के लिए अद्भुत एहसास लेकर आई थी, क्योंकि यह उसके ब्याह के बाद की पहली होली थी। अभी अभी नया घर संसार…
तुम और अपना गाँव - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कमला चाची दरवाजे पर टुकटुकी लगाए आज सुबह से अपने परदेसी बेटे जीवन की अनवरत प्रतीक्षा कर रही थीं, होली का दिन जो आ गया था। मगर बेरोज़गार…
पुराने संस्कार - लघुकथा - समुन्द्र सिंह पंवार
दादी जी के चेहरे की दिनों दिन बढ़ती चमक देख कर सब घर वाले हैरान हैं पर समझ नहीं पा रहे हैं और ना ही पूछने की हिम्मत कर पा रहे हैं। क्यो…