उपकार - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला

लॉकडाउन में परदेस में फँसे राजू रिक्शा वाले के पास घर वापसी के पैसे भी ना थे ऊपर से उसका घर वहाँ से पूरे 400 किलोमीटर दूर था।
बेचारा भूखा प्यासा राजू अपने रिक्शे को ही हमसफ़र बना घर की राह वापस हो लिया। रिक्शे पर उसने कुछ सामान रख लिया था जो उसकी परदेस में कमाई कुल पूँजी से लिया गया था।

रास्ते में मई की दोपहरी के वक़्त तेज धूप से हाँफते हुए  प्यास से विह्वल हो उठा। वह पानी की तलाश करता आगे बढ़ रहा था कि एक गाँव में कुछ दूर पर नल दिखाई दिया।
राजू नल के पास पानी पीने के लिए ज्यों आगे बढ़ा ही था कि उसी गाँव के बुजुर्ग शंभू नाथ ने उसकी दशा को भाँपते हुए कहा कि बेटा धूप से चलकर खाली पेट पानी पियोगे तो नुकसान करेगा, आओ कुछ खा लो। रिक्शा वाले पर तो मानो भगवान को ही दया गई, वह तुरंत बूढ़े शंभू नाथ के आमंत्रण पर उनकी झोपड़ी की तरफ़ चल दिया क्योंकि वह बहुत भूखा भी था। वहाँ शंभू नाथ ने उसे भरपेट खिचड़ी खिलाई और चलते वक़्त अस्सी रुपये भी यह कह कर दिए कि रख ले बेटा तेरे रास्ते में काम आएँगे।

राजू आश्चर्य से उनकी ओर देखता हुआ बोला, बाबा आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूँगा!! मैं कैसे चुकाऊँगा यह आपका प्यार!!
उसकी आँखों मे चलते वक़्त अनायस ही कुछ आँसू छलक पड़े। 

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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