बेमिसाल सूर्या और परमाल - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला

चित्तौड़गढ़ के राजा दाहिर सेन अत्यंत पराक्रमी एवं प्रजा पालक थे। वह दो वीरांगना अति सुन्दरी पुत्रियों सूर्या और परमाल व एक 12 वर्षीय पुत्र रघु के पिता थे। वह अपनी धर्मपत्नी के साथ महल में रहते थे।
राजा पूरी तन्मयता से पूरे समर्पण से अपनी प्रजा की परवरिश अपने बच्चों की भांति ही करते थे दूसरे राज्य के लोग भी उनकी प्रजापलन को उदाहरण के तौर पर देखते थे।
उनके यही सुसंस्कार उनके बच्चों में भी विरासत में मिले थे। उनकी दोनो बेटियाँ सूर्या व परमाल बेहद सुंदर, बुद्धिमती, युद्धकौशल में निपुण थीं साथ मे ही नृत्य गायन आदि सभी कलाओं में पारंगत थीं। देश विदेश के लोग उनकी सुंदरता व प्रतिभा का उदाहरण दिया करते थे।

उन्हीं दिनों अफगानिस्तान का क्रूर, दुष्ट, चालाक और धोखेबाज़ सुल्तान मोहम्मद बिन कासिम भारत में आक्रमण करने की नियत से चुपके से घुस आया जो की अपने आप मे एक कायरता का घटिया उदाहरण था। 
उसने कुछ अपने जासूसों की मदद से रात्रि के समय में दाहर सेन के किले पर भारी भरकम फौज के साथ आक्रमण कर दिया एवं सोते में ही राजा व उनकी पत्नी व छोटे बेटे समेत तमाम सैनिकों की निर्मम हत्या कर दी।उसकी बुरी नजर  जब राजा की सुंदर सुकुमार सोती हुई राजकुमारियों सूर्या, परमाल पर पड़ी तो उसने मारने की बजाय उनको अपने साथ गिरफ़्तार कर अपने अफगानिस्तान ले गया। वहाँ पर उसने उनके साथ विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा कि या तो ग़ुलाम बनना स्वीकार करो या मेरे साथ निकाह करो, मैंने तुम्हारे पूरे परिवार सहित प्रजा को मौत के घाट उतार दिया है और तुम्हारी खूबसूरती पर फ़िदा होकर जान बख़्श दी है।

वे दोनों बहने मन ही मन नफ़रत व प्रतिशोध की आग में जल रही थीं और अपनी मातृभूमि व परिवार का बदला लेने की युक्ति सोच रही थी। लेकिन वह बिचारी वन्दिनी थीं उनको कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था।
उन्होंने अपनी बुद्धिमानी का प्रयोग करते हुए, निकाह के लिए हामी भर दी और मेहर में एक एक ख़ंजर आत्मरक्षा के लिए माँगा और खुद5 को खुश दिखाने का अभिनय किया साथ ही एक शर्त यह भी रखी कि उन दोनों बहनों का कक्ष एक दूसरे से सटा होना चाहिए ताकि वह दोनों एक दूसरे से मिल बोल लिया करेंगी। मोहम्मद बिन क़ासिम तैयार हो गया और उसका निकाह उनके साथ पढ़ा दिया गया।

जब से रात्रि में शयनकक्ष में मोहम्मद बिन क़ासिम सूर्या के कमरे में पहुँचा तो सूर्या पहले से तैयार एक वीर सिपाही की भांति शेरनी की फुर्ती से मोहम्मद बिन क़ासिम पर झपट पड़ी और उसके साथ ही उसकी बहन परमाल भी आ गई और दोनों ही बहनों ने अपने अपने ख़ंजर से बिन क़ासिम के टुकड़े टुकड़े कर डाले। इस तरह उन महान बुद्धिमती व वीरांगनाओं ने अपनी मातृभूमि का अपने माता पिता एवं भाई का बदला लेकर अपने देश का क़र्ज़ चुकाया।
एवं साथ ही अपनी आबरू की हिफ़ाज़त भी कर सकीं।
इसके बाद मृत्यु को गले लगाने के सिवा उनके पास कोई  दूसरा रास्ता नहीं था, वह जानती थी कि गिरफ़्तार करने के बाद वे लोग उन दोनों की बहुत बुरी दशा करेंगे।
अतः सूर्या परमाल ने एक दूसरे को ख़ंजर भोंक कर वीरगति को चुना और अपने परिवार, मातृभूमि का बदला लेते हुए अमरत्व को प्राप्त हुई।
इससे बड़ी शौर्य, साहस बुद्धिमानी की मिसाल और कहाँ होगी। इससे बड़ी देशभक्ति का उदाहरण कहाँ मिलेगा। 

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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