स्वर्णभूमि - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला

अबकी बार फूलमती के खेत में गेहूँ की लहलहाती फ़सल पूरे वातावरण को सुगंधित कर रही थी, क्योंकि तराई में बसे गाँव भीखमपुर की विधवा फूलमती ने स्वयं ही खेतों को बटाईदार के हाथों से वापस लेकर अपने 14 वर्ष के बेटे सूरज के साथ फ़सल जो पूरी मेहनत से उगाई थी।
पिछले कई वर्षों से बटाईदार के हाथ से फूलमती को इतना भी अनाज नहीं मिलता था कि उसका पेट भरने का राशन भी पूरा हो पाता। बेचारी बहुत गऱीबी से गुजर बसर कर रही थी। मज़दूरी कर अपने इकलौते बेटे का पालन पोषण कर रही थी। इस बार फूलमती ने इसी कारण से अपना खेत वापस लेकर ख़ुद ही खेत की जुताई, बुवाई व निराई की, उसमें सिंचाई भी किसी तरह नालियाँ बनाकर की, गोबर की खाद को खेतों में डालकर अपनी फ़सल की परवरिश किसी बच्चे की तरह ही की, कोई कसर न छोड़ी।

फूलमती सुबह से शाम, दिन भर अपने खेतों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहती थी। आख़िर परिणाम तो अच्छा ही आना था।
उसकी मेहनत रंग लाई, खेत में गेहूँ की बालियाँ सोने की तरह चमक उठी थीं।

आज फ़सल कटने का दिन था तो बहुत उत्सुकतावस प्रातः पाँच बजे ही माँ बेटे खेत में पहुँच गए परिणामतः एक हफ्ते में उसके घर अनाज के अंबार लग गए। जिसे देखकर माँ बेटे निहाल हो गए। फूलमती कल्पनाओं में खो सी गई कि अब सूरज को अच्छे से पढ़ा लिखा सकूँगी। अभी उसकी खुशी चरम सीमा पर पहुँची ही थी कि अगले दिन सरकार की तरफ़ से उसके खेत पर से गुज़रते हुए सड़क का नक्शा बनाने हेतु कुछ सरकारी कर्मचारी फूलमती के पास आकर मुआवजे की बात करने लगे। यह सुनते ही फूलमती आपे से बाहर होकर बोली साहब हमरे खेत सोना उगलत हइं ई हमका पिरानन से जादा पियार लागत हइं, ई हम कोई कीमत पर ना देईब।
फूलमती को अपनी कर्मभूमि किसी स्वर्णभूमि से कम नही लग रही थी।
उसे विरासत में स्वर्गवासी पति से मिली कुल पूँजी में वो आठ बीघा खेत ही तो था जिसे वह अपने इकलौते बेटे सूरज की तरह ही अपने प्रीतम की निशानी के तौर पर भी देखा करती थी। सो वह उसे अपने से कैसे अलग कर सकती थी।
अतः फूलमती किसी भी कीमत पर खेत देने को तैयार नहीं हुई एवं फिर उसने प्रतिवर्ष पूरी मेहनत और लगन से स्वयं ही अपने खेत में फ़सल पैदा तैयार की।

फूलमती ने अच्छी खासी तरक्की कर अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया।
आज उसका लड़का बीएससी की परीक्षा देने जा रहा है। फूलमती की मेहनत व निष्ठा से प्रभावित होकर भीखमपुर के लोगों ने फूलमती को इस बार ग्राम प्रधान चुन लिया है।
फूलमती अतीत की यादों से निकल अपनी स्वर्णभूमि को अपलक निहार रही थी।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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