संदेश
कच्ची मिट्टी - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
कच्ची मिट्टी सी मैं, सबके रंग में रंग जाऊँ, ढाल ख़ुद को...! अपनो की ख़ुशियों में, मन ही मन सुकून पाऊँ, हर रिश्ते के साँचे में, ढाल ख़ुद …
मैं एक पत्रकार हूँ - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मैं एक पत्रकार हूँ, मैं एक पत्रकार हूँ। समाज का हूँ आईना, अवाम का ग़ुबार हूँ। कहाँ पे क्या सही हुआ, कहाँ पे क्या ग़लत हुआ। कहाँ पे क्या …
हे तरुवर! - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
हे तरुवर! गर तुम न होते साँस कहाँ से लाते हम? खट्टा-मीठा और रसीला स्वाद कहाँ से पाते हम? लाल गुलाबी नीले पीले ख़ुशबू वाले फूल न होते, क…
सुनो कुछ कहना है - कविता - मेहा अनमोल दुबे
सुनो कुछ कहना है– ज़िंदगी कभी आसान नहीं होती, आसान बनाना पड़ता है, कभी-कभी बेवजह भी गुनगुनाना पड़ता है, ख़्वाहिश ज़रूर पूरी करो पर जीना…
साइकिल - आलेख - पारो शैवलिनी
साइकिल चलाना व्यायाम करने और परिवहन पर पैसे बचाने का एक शानदार तरीक़ा है। साइकिल चलाना बच्चों और वयस्कों समेत महिलाओं के लिए भी उपयोगी …
आया महीना जून का - मनहरण घनाक्षरी छंद - रमाकांत सोनी
आया महीना जून का, सूरज उगले आग। चिलचिलाती धूप में, बाहर ना जाइए। गरम तवे सी धरती, बरस रहे अंगारे। आग के गोले सी लूएँ, ख़ुद को बचा…
अब साज सँवार नहीं करना - गीत - शुचि गुप्ता
लख खंडित दर्पण रूप कहे, अब साज सँवार नहीं करना। विधिना जब घोर कलंक दिया, तम मावस रात नहीं टरना। पकड़ा जब भी निज स्वप्न कभी, मम भाग सदा…
इश्क़ और अश्क - कविता - बृज उमराव
इश्क़ के अश्क जो आँखों में, भाव न इनका पढ़ पाया। असमंजस में दो राहे पर, राह न अपनी चुन पाया।। आँखों से लुढ़क कर गालों में, इक स्याह लकी…
नवभोर - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवभोर नमन मंगलमय जन, खिले चमन नव प्रगति सुमन। पथ नवल सोच नवशोध सुयश, नवयुवा देश हित भक्ति किरण। कर्म कुशल युवा जन मन भारत, सच्चरि…
चंचल कलियाँ - कविता - संगीता राजपूत 'श्यामा'
ऋतु सावन की झोंके खाए कजरी मल्हार मे ठनी झूले झूल उठे डाली पे कली मकरंद संग सनी। नाच रहे हैं पत्ते देखो मेघ द्वार बरसे बूँदे घटा म…
नयन-नयन में हो रही - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
नयन-नयन में हो रही, नयन-नयन की बात। प्रेम प्यार का अंतरा, गीत-ग़ज़ल शुरुआत॥ गीत ग़ज़ल शुरुआत, शब्द रचना है सुरीली। ऐसे समझो यार, जैस है…
राम-रहीम के झगड़े - कविता - अनिल कुमार
कभी ईद कभी हनुमान-महावीर जयंती पावन अवसर धर्म की रेलियाँ कहीं पत्थर-चाकूबाजी कहीं उल्लड़बाजी-गोलियाँ अख़बारों के पन्ने रोज़ ही लाल कभी य…
सुलझता मन - कविता - मेहा अनमोल दुबे
सुलझता मन मेरा– उलझनो में, उलझते-उलझते बहुत उलझ गई ज़िंदगी। ज़िंदगी "ज़िंदगी" नहीं उलझा माँझा लगती है कभी-कभी। न ख़्वाहिश न उम…
ख़ुशी का राज़ - लघुकथा - प्रवेंद्र पण्डित
रमन मायूस मन लिए पैदल ही कारखाने से घर की तरफ़ निकल पड़ा। मन में विचारों का मंथन चल रहा था। आख़िर पाँच हज़ार तनख़्वाह में कैसे घर चलेगा,…
दो जहाँ की हसीं जज़ालत है - ग़ज़ल - नवीन नाथ
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 दो जहाँ की हसीं जज़ालत है, ख़ुल्द से बड़के ख़ूबसूरत है। मुल्क रब की निगाहों सा दि…
बंधन - कविता - डॉ॰ सरला सिंह 'स्निग्धा'
अपनों को ही मार रहा यह लिए डोलता आयुध साज। मिलता जो कमज़ोर उसे ही हासिल करने की चाहत है। कहाँ दया ही उसके दिल में देता कब किसी को राहत …
आस का पंछी - कविता - राजीव कुमार
आस का पंछी उड़ान भरे, आस को मिलता रहे जीवन, संघर्ष समर्पण, संघर्ष समर्पण। आस का पंछी जिस डाल बैठे, न आए उसमे पतलापन, संघर्ष समर्पण, संघ…
संयुक्त परिवार हमारा - कविता - गणपत लाल उदय
बच्चों-जवानों बुज़ुर्गों से भरा है आँगन सारा, संस्कारो से जुड़ी हमारी जिसमें विचारधारा। तुलसी पूजन की हमारी यह पुरानी परम्परा, ऐसा है ख़…
प्रकृति का सुकुमार कवि : सुमित्रानंदन पंत - कविता - राघवेंद्र सिंह
जयति जय हे! हिमालय पुत्र, बन मकरंद तुम निकले। हरित आँचल हिमानी से, बनकर छंद तुम निकले। प्रकृति के अंक तुम खेले, नदी झरनों ने की कल-कल।…
तपिश - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
भयंकर तपिश के दरमियाँ, ये जो शीतल जल है। यही तो बस आजकल, जीने का सम्बल है। उफ़ ये जलती फ़िज़ाएँ, अंधड़ की डरावनी सदाएँ। ये आँधियाँ ये गर्म…
मज़दूर - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
रात दिन मेहनत करता जी भर पीता पानी, तंगी में भी ख़ुश रहता मज़दूर तेरी यही कहानी। औरों की सेवा करता सर्दी गर्मी या बरसे पानी, तन पे कपड़ा…
तुमने मुझसे मेरा कमरा ही छीन लिया - कविता - नौशीन परवीन
तुमने मुझे दिया तो एक कमरा जिसमें फूलदान हवादान, दीवारों पर लगी सीनरी जो हमारी गुमसुम सी मुस्कान को बरक़रार रखती थी वह कमरा जो हमारी …
सरहदें - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
सरहदों पर थामे कफ़न हो मौत जिनकी...! इमान-ए-वतन हो, सरहदों से टकरा कर बाग़ी हवा भी लौट जाए लहू में बहती जिनके अग्न हो। जात न पूछो... पात…
बच्चों को ख़ूब लुभाते आम - कविता - आशीष कुमार
खट्टे मीठे पीले आम, कितने हैं रसीले आम। सभी फलों के राजा हैं, सबसे ऊँची इनकी शान। आई गर्मी लेकर आम, सूझा ना कोई और काम। आम तोड़ने की ह…
संग हमें रहना है - गीत - रमाकांत सोनी
हर मुश्किल संघर्षों को मिलकर हमें सहना है, कुछ भी हो जाए जीवन में संग हमें रहना है। संग हमें रहना है। प्रीत की धारा बह जाए प्रेम सुधार…