राम-रहीम के झगड़े - कविता - अनिल कुमार

कभी ईद
कभी हनुमान-महावीर जयंती
पावन अवसर
धर्म की रेलियाँ
कहीं पत्थर-चाकूबाजी
कहीं उल्लड़बाजी-गोलियाँ
अख़बारों के पन्ने
रोज़ ही लाल
कभी यहाँ, तो कभी वहाँ
ख़ून बहा
धर्म के डंडे चले
धर्म के नारे लगे
कितने मर गए? 
कितने घायल बेहाल?
कभी अल्लाह 
कभी जय श्री राम
बलिदान हूए कहते-कहते
वतन के कुछ बेटे
लेकिन, तब भी
राम-रहीम चुपचाप रहे
न मन्दिर, न मस्जिद 
न क़ाफ़िलों में साथ रहे
लड़ा कौन? झगड़ा कौन?
अख़बारों के पन्ने
उजड़े घर
लाशों के ढेर
बेबश, लाचारी में ताक रहे।
कभी ईद
कभी दीवाली
देश जलता है इस आग में
हिन्दू-मुस्लिम झगड़े
सड़कों पर धुआँ-राख है 
अल्लाह-भगवान
गलियों में लड़ रहे है
ख़बर अख़बारों में
आजकल, ऐसी पढ़ रहे है...।

अनिल कुमार - बून्दी (राजस्थान)

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