संयुक्त परिवार हमारा - कविता - गणपत लाल उदय

बच्चों-जवानों बुज़ुर्गों से भरा है आँगन सारा,
संस्कारो से जुड़ी हमारी जिसमें विचारधारा।
तुलसी पूजन की हमारी यह पुरानी परम्परा,
ऐसा है ख़ुशियों-भरा संयुक्त परिवार हमारा।।

करतें है आदर-सत्कार एवं अतिथि की सेवा,
दूध दही पिलाकर इनको करवातें है कलेवा।
दादा और दादी का घर में रहता सदैव पहरा,
जिनकें आशीर्वाद से मिलता सभी को मेवा।।

चारों और है रौनक गूँजें बच्चें की किलकारी,
सुख दुःख में रहतें है संग चाचू चाची हमारी।
सिखते है कई अनुभव और मिलतें सुविचार,
परिवार से ख़ुशी‌ मिलती व ताकत ढेर सारी।।

सुख का अनुभव होता हमें एक साथ रहकर,
त्याग प्रेम करुणा ममता है सभी में जमकर।
ऐसे रिश्तों का समूह है हमारा प्यारा परिवार,
समाधान भी ढूँढ़ लेते परेशानी का मिलकर।।

जिसमें प्रेम का भरा भंडार ऐसा यह परिवार, 
एक साथ पूरा-परिवार बैठकर लेता आहार।
ख़ुशी के दीप जलाते एवं सजाते घर के द्वार,
होली व दीपावली चाहें हो कोई भी त्यौहार।।

गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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