संदेश
मैं पिता जो ठहरा - कविता - विजय कृष्ण
मैं पिता जो ठहरा- प्यार जता नहीं पाया। बच्चे माँ से फ़रियाद किया करते थे, पापा को घूमने के लिए मना लो, ये मनुहार किया करते थे। बच्चों स…
यतीम सा खड़ा मौन खँडहर - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खँडहरों में गुमसुम विरासत, बेज़ुबाँ कहती गौरव सल्तनत, बेशूमार दौलत अय्याशियाँ, गूँजते कर्णप्रिय संगीत स्वर, विपिन बना आज खँडहर यतीम…
मिला झूठ को मान - दोहा छंद - संत कुमार 'सारथि'
चमत्कार दिखला रहा, कलयुग में दिन रात। मिले झूठ को मान है, सच्चाई को मात।। उलटी गंगा बह रही, देखो करके ध्यान। सच्चाई मुँह ताकती, मिला झ…
आस्था - गीत - रमाकांत सोनी
भावों के भँवर में बोलो बहकर कहाँ जाओगे, मंदिर सा मन ये मेरा कभी दौड़े चले आओगे। आस्था की ज्योत जगाकर दीपक जला लेना, भाव भरे शब्द सुमन …
अकेलापन - लघुकथा - निर्मला सिन्हा
"बहु ओ बहु! सुबह के सात बज गए हैं चाय कब पिला रही हो?" "जी मम्मी जी! बस अभी ला रहे हैं।" "राधिका तुमने मेरी फ़…
ख़ाकी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हमें सुलाते जाग-जाग कर, जिनसे है आबाद वतन। जिनका धर्म त्याग सेवा है, उस ख़ाकी को कोटि नमन। शूरवीर ये सच्चे योद्धा, इनसे ही है चैन अमन। …
खोया बचपन - कविता - सीमा वर्णिका
आ लौट चलें बचपन की ओर, जहाँ नहीं था ख़ुशियों का छोर। दिन-रात खेलकूद की ख़ुमारी, पढ़ाई कम और मस्ती पर जोर। वह ग्रीष्मावकाश होते थे वरदान,…
सुबह हो रही है - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
उठो! मेरे आत्मा के सूरज सुबह हो रही है तरु शिखाओं की ऊपरी फुनगियों पर, उतर रही है- उजले सूरज की चंचल धूप कोमल दल पर किरनें, दुब पर टँग…
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं, दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद। Insaan Ki Khwahishon Ki Koi Intiha Nahin, Do Gaz Zam…
राम का वन गमन - सरसी छंद - महेन्द्र सिंह राज
ज्ञात हुआ जब सीता जी को, बन को जाते राम। चरणों में सर रखकर बोली, सुनिए प्रभु सुखधाम।। अपने चरणों की दासी को, ले लो अपने साथ। पत्नि धर…
तुम कविता का पूर्ण भाव हो - कविता - राघवेंद्र सिंह
मैं कविता की प्रथम पंक्ति हूंँ, तुम कविता का पूर्ण भाव हो। मैं तो केवल तुकबंदी हूंँ, तुम लहरों में रस बहाव हो। मैं शब्दों का गठबंधन हू…
सूर्य की धरती - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
मैं धरती तू सूर्य मेरा... तेरे "प्रकाश" से चमक रही, नित हरित दूब सी महक रही, विघ्नों के विराम अवसर पर, शरद सा शीतल हुआ सवेरा…
ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से - ग़ज़ल - अरशद रसूल
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तकती: 1222 1222 1222 1222 ज़ख़्म इतने मिल चुके हैं तितलियों से, डर नहीं लगता हमें अब आँधिय…
उसे नहीं पसंद लकीरों पर चलना - कविता - अबरार अहमद
उसे नहीं पसंद... किसी भी लकीर के पीछे चलना, समझ और नासमझी की परिभाषा में उलझना, सही और ग़लत के गुणा भाग में जीवन का रस छोड़ देना। उस…
प्रदूषण - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
जिधर देखिए प्रदूषण प्रदूषण, धरती वहीं आसमाँ भी वही, चाँद तारे सूरज भी वही, हवा वो मगर कहाँ खो गई? भूल हमसे कहाँ हो गई? नदियाँ वही आज न…
महापर्व छठ पूजा - कविता - नंदिनी लहेजा
कार्तिक मास की शुक्ल षष्ठी को, मनाते छठ का व्रत महान। सुख समृद्धि का दाता है और, दे निःसंतानों को संतान। प्रियवंद राजा बड़ा था व्याकुल,…
कवन सुगवा मार देलस ठोरवा - लोकगीत - आशीष कुमार
कवन सुगवा मार देलस ठोरवा, ए रामा गजब भइले ना। कि आहो रामा सुगवा जुठार देलस केरवा, ए रामा गजब भइले ना। कतना जतनवा से भोगवा बनइनी, ए राम…
जो मन कहता - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 बंदिश में जीना, मरना है, फिर क्यों बंदिश से डरना है। सोच लिया है इसीलिए अब, जो म…
हृदय परिवर्तन - कहानी - अंकुर सिंह
"अच्छा माँ, मैं चलता हूँ ऑफ़िस आफिस को लेट हो रहा है। शाम को थोड़ा लेट आऊँगा आप और पापा टाइम से डिनर कर लेना।" अंकित ने ऑफ़ि…
समरस जीवन सहज हो - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
अरुणिम आभा भोर की, खिले प्रगति नवयान। पौरुष परहित जन वतन,सुरभित यश मुस्कान।। नवयौवन नव चिन्तना, नूतन नवल विहान। नव उमंग सत्पथ रथी, बढ़…
खीर में पड़ गया नमक हो ज्यों - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 212 212 1222 खीर में पड़ गया नमक हो ज्यों, ऐसी बेस्वाद बात कर दी क्यों। आप भी सच्चे, बात भी सच्…
अपनी ढपली अपना-अपना राग - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
सुखा फूल मुरझा कर पड़ा जो सड़क पर, किसी को लगे गंध तो किसी को पराग। आज सब हैं अपनी मर्ज़ी के मालिक, सबकी अपनी ढपली अपना-अपना राग। सफ़ेद …