डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली
यतीम सा खड़ा मौन खँडहर - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सोमवार, नवंबर 15, 2021
खँडहरों में गुमसुम विरासत,
बेज़ुबाँ कहती गौरव सल्तनत,
बेशूमार दौलत अय्याशियाँ,
गूँजते कर्णप्रिय संगीत स्वर,
विपिन बना आज खँडहर यतीम,
भरते सिसकियाँ स्वर्णिम यौवन,
लिखते इबादत ख़ुद की आशियाँ,
फ़रमानों के अतीत थे गुलज़ार,
बेइन्तहाँ मुहब्बत के नगीने,
बेशूमार चमकते ख़ुशनुमा चमन,
पंचम स्वर निनाद अनेकों वाद्ययंत्र,
बस आज सुनसान मरघट बने,
अनदेखे मंज़िले बादशाहत महल,
आज ख़ुद के आबरू को लूटते,
देखते नाइंसाफ़ी ख़ुद के मुक़द्दर,
बस दिलाते अहसास बीते लम्हों,
सरताज-ए-सिकन्दर अतीत,
दीवानगी ख़ूबसूरत नज़ारे दास्ताँ,
बस मौन एकटक विदीर्ण घायल,
क्षत विक्षत लहूलुहान खँडहर।
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