संदेश
कविता का विस्तार लिखूँ - कविता - प्रीति त्रिपाठी
मन की विषद जटिलताओं को सौंप तुम्हें, साभार लिखूँ, पीड़ाओं के अनुभव से निज कविता का विस्तार लिखूँ। चंदा के आलिंगन से हिय क्षण भर का सुख …
आदर्श शिक्षक - बाल गीत - भगवत पटेल 'मुल्क मंजरी'
जीवन भर जो सीखे बच्चों वो शिक्षक कहलाता है। पढ़ता लिखता और सिखाता, नवाचार वो करता है। अपना धर्म सही निभा कर, युग निर्माण करता है। पदचि…
छवि (भाग १४) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१४) 'धर्म' शब्द का सही अर्थ से, जन-मानव अनजान हैं। बहुसंख्यक हैं अज्ञानीजन, लघुसंख्यक को ज्ञान है।। धर्म किसे कहते हैं जानो, …
देवी मइया - लोकगीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मइया ऊँची है तोहरी अटरिया। कइसे आवउँ मै तोहरी नगरिया। 2 लहँगा मइ लाई चुनरिया हूँ लाई, बेलवा चमेलिया की माला बनाई, मइया ठाढ़ी हूँ तोहरी …
आया है नवरात्रि का त्यौहार - कविता - सोनल ओमर
आया है नवरात्रि का त्यौहार। नवरात्रि में माँ का सजेगा दरबार। गली-गली गूँजेंगे भजन कीर्तन, माँ अंबे की होगी जय जय कार।। आयी है होकर शेर…
शैलपुत्री जग कल्याणी माँ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
माँ जगदम्बे शेरावाली, महाकालिका खप्परधारी, उमा शैलजा मंगलकारी, प्रथमस्वरूपा दुर्गे रानी। कलश स्थापना मातु भवानी, शैलपुत्री परिणीत…
हे अष्ट भुजाओं वाली - कविता - गणपत लाल उदय
हे अष्ट भुजाओं वाली माँ अम्बे रानी, माता आदिशक्ति कृपा करो भवानी। इस सारे संसार को आप ही चलाती तुम्हारे अनेंक है रूप अनेंक कहानी।। जब…
कसक दिल की - कविता - प्रवीणा
मैं एक स्त्री हूँ और साथ ही साथ किसी की बेटी तो किसी की बहू हूँ, किसी की बहन, किसी की भाभी तो किसी की ननद हूँ, किसी की पत्नी तो किसी क…
ट्रेन - कविता - शुभोदीप चट्टोपाधाय
ट्रेन की तेज़ रफ़्तार और मष्तिस्क की तेज़ गति दोनों को रू-ब-रू रखा आँख मूँदते ही मानो दोनों गहरे दोस्त बन गए मेरे आँखों को सब धीमा धीमा…
तुम्हें ग़ुरूर है किस पर - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
तुम्हें ग़ुरूर है किस पर अपने यौवन पर? ढल जाएगा यौवन एक दिन। तुम इतराते हो किस पर अपने ज़ुल्फ़ों पर? पक जाएँगी ज़ुल्फ़ें एक दिन। तुम्हें ना…
वक़्त की आवाज़ - गीत - रमाकांत सोनी
वक़्त की आवाज़ है ये, समय की पुकार भी। तोड़े नियम सृष्टि के, नर कर लो स्वीकार भी। चीरकर पर्वत सुरंगे, सड़के बिछा दी सारी। वृक्ष विहिन…
ये कैसी है कशिश जिसमें इक सुखन ढूँढ़ती हूँ मैं - ग़ज़ल - रेखा श्रीवास्तव
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 1222 1222 1222 1222 ये कैसी है कशिश जिसमें इक सुखन ढूँढ़ती हूँ मैं, मिले जहाँ दिल…
मानवता का पतन - कविता - आशीष कुमार
शर्मसार हुई माँ वसुंधरा पाप पुण्य से आगे बढ़ा, क्षत-विक्षत हुआ कलेजा आँचल होने लगा मैला। कामी लोभी क्रोधी घमंडी एक चेहरे पर कितने मुखौ…
बरगद और बुज़ुर्ग तुल्य जगत - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
युवाशक्ति आगे बढ़े, धर बुज़ुर्ग का हाथ। बदलेगी स्व दशा दिशा, देश प्रगति के साथ।। बरगद बुज़ुर्ग तुल्य जग, स्वार्थहीन तरु छाव। आश्रय किसलय …
नदी - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
न इर्ष्या-द्वेष, न अभिमान की धारा है, हर्षित हैं सर्व प्राणी वहाँ, जहाँ-जहाँ तूने पाँव पसारा है।। रोम-रोम धरा का पुलकित, प्राणी मिटाते…
नारी जीवन - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
ओ नारी! तुम दिव्य धरा में अविरल करूँ तुम्हारा वंदन। ममता की प्रतिमूर्ति मनोरम ओ! माता की करुण कहानी। पयशाला का भार लिए उर सजल नयन से झ…
मिलने तुम आ जाना - कविता - अंकुर सिंह
नित्य नए षड्यंत्र देख, कब तक ख़ामोश रहूँ मैं? देख ज़ुल्म अन्याय को, कब तक इन्हें सहूँ मैं? अपने अनकहे दर्द को मैंने, बयाँ किया ना लफ़्ज़ों…
पिता ही करता ऐसा काम - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
चुप रह कर जो हर पल सोचे, मौन रहकर करे सब काम। सामने वाला जान भी न पाए, करे उसके हर ज़रूरतों का इंतज़ाम। ऐसा करने वाला कोई और नहीं, सिर्फ…
छवि (भाग १३) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
(१३) वर्ष हज़ारों बीत गए अब, आया नूतन काल है। रहन-सहन मानव का बदला, बदल गई अब चाल है।। विविध धर्म और जातियों में, जीवात्मा गण बँट गए। ज…
आओ दिनकर - कविता - सुरेंद्र प्रजापति
आओ दिनकर, फिर सत्ता से जनता का कठोर, सवाल करो। हताशा, क्षोभ, विपदा के आँसू, पोछो मत, एक हुंकार भरो। ओज, किरण, ऊष्मा का नेता चेतना का, …
तेल और बाती - कविता - डॉ॰ मीनू पूनिया
जग प्रसिद्ध दीपक की नहीं, यह है तेल और बाती की दर्द भरी कहानी, अस्तित्व जिसका सदियों से गुमशुदा, सब्र से सुनो आज तुम मेरी ज़ुबानी। बच…
वृद्ध जनों की करो हिफ़ाज़त - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
धरती और गगन के जैसे, वृद्ध जनों के साए हैं। इन बूढ़े वृक्षों की हम सब, पल्लव नवल लताएँ हैं। इनके दिल से सदा निकलती, लाखों लाख दुआएँ हैं…
नशा करे चेतना शून्य - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
क्षण भर के आनंद के लिए अपना ही नहीं अपने परिवार का भी जीवन तो मत बिगाड़िए, तन का नाश, मन का विनाश चेतना को शून्य की ओर तो मत ढकेलिए। सब…
बचपन - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
कभी रूठ के तेरा जाना मुस्कुराना आना फिर पलट के हँसना खिलखिलाना और मचलना रोना आँसू बहाना कभी मीठी न्यारी प्यारी बातों से मन को गुदगुदान…
तन्हा ग़ज़ल - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
अरकान : फ़ेलुन फ़अल तक़ती : 22 12 तन्हा ग़ज़ल, कितनी विकल। वीराँ महल, क़िस्मत का फल। दस्तूर से, यूँ मत निकल। दुनिया नहीं, ख़ुद को बदल। ख़ुद स…