पिता ही करता ऐसा काम - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा

चुप रह कर जो हर पल सोचे,
मौन रहकर करे सब काम।
सामने वाला जान भी न पाए,
करे उसके हर ज़रूरतों का इंतज़ाम।
ऐसा करने वाला कोई और नहीं,
सिर्फ़ पिता ही करता ऐसा काम।।

तन में अपना सुन्दर वस्त्र हो न हो, 
बच्चों के उत्तम वस्त्रों का करता इतंज़ाम। 
भर पेट अपना खाना हो न हो, 
बच्चों के पेट भरने का करता हर काम। 
ऐसा करने वाला कोई और नहीं,
सिर्फ़ पिता ही करता ऐसा काम।।

स्वयं पढ़ा-लिखा हो या हो अनपढ़,
बच्चों को पढ़ाने में रहता अव्वल।
अच्छी से अच्छी ज़िंदगी बने उसकी, 
इसकी कोशिश में लगा रहता हर पल।
ऐसा करने वाला कोई और नहीं,
सिर्फ़ पिता ही करता ऐसा काम।।

करता बच्चों को सबसे अधिक प्यार,
पर जताता नहीं अपना यह एहसास।
बच्चों से बिछुडने के मार्मिक बेला में,         
आँसुओं को रोक भरता ठंडी साँस।
ऐसा करने वाला कोई और नहीं,
सिर्फ़ पिता ही करता ऐसा काम।।

डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा - राँची (झारखंड)

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