कविता का विस्तार लिखूँ - कविता - प्रीति त्रिपाठी

मन की विषद जटिलताओं
को सौंप तुम्हें, साभार लिखूँ,
पीड़ाओं के अनुभव से
निज कविता का विस्तार लिखूँ।

चंदा के आलिंगन से
हिय क्षण भर का सुख पाता है,
रजनी को छलने वाली
रवि किरणों का व्यापार लिखूँ।
पीड़ाओं के अनुभव से
निज कविता का विस्तार लिखूँ।।

अधरों की कोरों से
उनका नाम छुआ रह जाता है,
सीमाओं से परे कहीं,
सम्बन्धों का स्वीकार लिखूँ।
पीड़ाओं के अनुभव से
निज कविता का विस्तार लिखूँ।।

गीतों से रह जाए तो
फिर ग़ज़लों में ढल जाता है,
आँखों के वारिधि से उमड़ी
धारा का आधार लिखूँ।
पीड़ाओं के अनुभव से
निज कविता का विस्तार लिखूँ।।

अनुबंधों से परे अबूझी
तृष्णा वाला नाता है,
उनसे जो पाया है उसको
भावों का शृंगार लिखूँ।
पीड़ाओं के अनुभव से
निज कविता का विस्तार लिखूँ।।

मन की विषद जटिलताओं
को सौंप तुम्हें साभार लिखूँ।
पीड़ाओं के अनुभव से
निज कविता का विस्तार लिखूँ।।

प्रीति त्रिपाठी - नई दिल्ली

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