छवि (भाग १४) - कविता - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'

(१४)
'धर्म' शब्द का सही अर्थ से, जन-मानव अनजान हैं।
बहुसंख्यक हैं अज्ञानीजन, लघुसंख्यक को ज्ञान है।।
धर्म किसे कहते हैं जानो, अज्ञानी जन ध्यान से।
पूजनीय मनीषियों द्वारा, किए गए व्याख्यान से।।

धर्म सत्य है धर्म न्याय है, धर्म अहिंसा-दान है।
धर्म दया-करुणा-श्रम-सेवा, आचरण और ज्ञान है।।
हर प्राणी के धारण-पोषण, नियम शक्ति ही धर्म है।
क्षमा-शौच-संयम-धीरज, सद विचार सद कर्म है।।

सदियों से ही धर्म शब्द पर, उभरे गहन विवाद हैं।
पंथ और सम्प्रदाय नाना, रीति किए प्रतिपाद हैं।।
'धर्म हमारा सर्वोत्तम है', हर कोई कहता यही।
पंथों का उद्देश्य दरअसल, सही मायने पता नहीं।।

उद्देश्य सभी पंथों का है, मानव दुख से मुक्त हों।
शांतिपूर्ण हों मानव जीवन, शाश्वत सुख से युक्त हों।।
अहा! उमड़ आया उरतल में, भावों के अंबार हैं।
छवि अनुपम हर पंथों की, विश्व शांति आधार है।।

डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos