नदी - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल

न इर्ष्या-द्वेष, न अभिमान की धारा है,
हर्षित हैं सर्व प्राणी वहाँ,
जहाँ-जहाँ तूने पाँव पसारा है।।
रोम-रोम धरा का पुलकित,
प्राणी मिटाते प्यास जहाँ किनारा है।
तू इर्ष्या-द्वेष, न अभिमान की धारा है।।
 
नतमस्तक सर्व प्राणी आगे तुम्हारे,
युगों-युगों तक चले तेरे सहारे।
कृति तुम्हारी धरातल पर पाँव पसारा है।
तू इर्ष्या -द्वेष, न अभिमान की धारा है।।

सीख मानवता को दे रही तू एक संदेश में,
सर्व प्राणी हितकारी बढ़े चलो,
सुख-दुःख दोनों तीरों के भेष में।
निगलते जा रहे अब मानव तुझे,
बने और सब प्राणी बेसहारा हैं।
न इर्ष्या-द्वेष, न अभिमान की धारा है।।

राजेन्द्र कुमार मंडल - रामविशनपुर, सुपौल (बिहार)

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