नारी जीवन - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'

ओ नारी! तुम दिव्य धरा में
अविरल करूँ तुम्हारा वंदन।

ममता की प्रतिमूर्ति मनोरम
ओ! माता की करुण कहानी।
पयशाला का भार लिए उर
सजल नयन से झर-झर पानी।
आह! सर्जना पीर छिपाए
जीवन धन की अमर निशानी।

जिस घर में अवतरण हो गया
रातों-रात बन गया नन्दन।

जहाँ न पूजित हो नारी तुम
गेह अकिंचन सघन अँधेरा।
नहीं शान्ति सुख उन्नति वैभव 
महाकाल का लगता फेरा।
फिर भी कल्याणी तुम लाती
उसी सदन में सुखद सबेरा।

पी जाती हो कालकूट तुम
और निकेतन बनता कंचन।

कितनी भव्य मनोरम नारी
नख से शिख तक सुरभि बिखेरे।
दु:खद जीवनी इंद्रजाल से
ला देती है सुहृद बसेरे।
ओ श्रृद्धामयि! तुम्ही काटती
संबल बन कर दु:ख के घेरे।

चरण तुम्हारे जहाँ पड़ गए
कण-कण महके जैसे चंदन।

शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

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