अरकान : फ़ेलुन फ़अल
तक़ती : 22 12
तन्हा ग़ज़ल,
कितनी विकल।
वीराँ महल,
क़िस्मत का फल।
दस्तूर से,
यूँ मत निकल।
दुनिया नहीं,
ख़ुद को बदल।
ख़ुद से ज़रा,
बाहर निकल।
ऐ दोस्त मत,
जाना बदल।
क्या रूप है,
खिलता कमल।
तुम ही करो,
कोई पहल।
समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)