संदेश
माँ हूँ - कविता - राम प्रसाद आर्य 'रमेश'
सर्दी सता रही है बेटा, आ, आँचल में छुप जा। माँ हूँ, रो मत, ले तन ढक ले, अब तो तू चुप जा।। एक छोर निज सर ढक लूँ, दूजे तेरे तन को। मा…
मौत और ज़िन्दगी - गीत - सतीश मापतपुरी
नाश और विध्वंस ही निर्माण का आरम्भ है। मौत ही तो ज़िन्दगी का इक नया प्रारम्भ है। हम खिलौना हैं किसी के हाथ का। छूटता जो ग़म न कर उस साथ …
मौसमी मार - कविता - विनय 'विनम्र'
जनवरी में जाडे का एहसास देखो, अंगीठी है किसके जरा पास देखो, शरीरों पे कपडों का मेला सजा है, खूंटी पे देखो बस हैंगर टंगा है। ग़रीबों क…
बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग - गीत - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग, निःस्वार्थ छाँव जीवन होते हैं। आश्रय नवपादप बाल युवा, श्रान्त मनुज मन राहत समझो। अनुभव जीवन अतिदी…
स्त्री तू ही क्यों? - कविता - मधुस्मिता सेनापति
स्त्री तू ही क्यों अपने शब्दों को मिटाकर अपने ही एहसास को मन में ही मार देती है...! स्त्री तू ही क्यों अपने भीतर की शक्ति को पहचानना ह…
हमें साथ रहना है - कविता - प्रवीन "पथिक"
हर बार मुझे ही, नतमस्तक होना पड़ता तेरे समक्ष। तुम नहीं झुकती, क्योंकि हिमालय नहीं झुकता। हर बार मेरी ही, आँखें अश्रुपात करती। तुम नही…
दलित किसने बनाया - कविता - शेखर कुमार रंजन
हम भारत में जन्मे और भारत मेरे कण कण में हवा पानी खाना मिला बचपन धूप बरसात में खिला। प्रकृति से ना शिकवा गिला भेद भाव ना इससे मिला आज …
शब्द महिमा - कविता - रमाकांत सोनी
शब्द ही गीत शब्द ही तान, शब्द है सात सुरों का ज्ञान। शब्द है एक सुंदर झंकार, शब्द ही जीवन और संसार। शब्द है व्यक्तित्व का दर्पण, शब्द …
यारों कोशिशें भी कमाल करती है - कविता - सुनील माहेश्वरी
यूँ ही नहीं मिल जाती मंज़िल, सिर्फ एक पल भर सोचने से, इंसान की कोशिशें भी कमाल करती हैं, यूँ ही नहीं मिलती रब की मेहरबानी, दर-ब-दर इबाद…
श्रृंगार - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊँ, वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊँ। लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली, फूलों …
लगी आग नफ़रत की ऐसी - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
मैं जब भी पुराना मकान देखता हूँ। थोड़ी बहुत ख़ुद में जान देखता हूँ। लड़ाई वजूद की वजूद तक आई, ख़ुदा का यह भी इम्तिहान देखता हूँ। उजड़ गया आ…
कोसों दूर - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मेरे गाँव का रास्ता कहीं सकरा कहीं ऊँचा कहीं कहीं कंकड़ काँटे और अद्रश्य मोड़ जिन्हें पार कर जाते है। श्रम से सरावोर मजदूर चौपाई गाता ग्…
वफ़ा की राह में - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बुझ गया दीप उल्फ़त का जो जलाने से रहा, सनम की याद का आलम तो मिटाने से रहा। इस कदर घायल रही उल्फ़त वफ़ा की राह में, छुप गया यार मेरे पास व…
सैनिक - कविता - डॉ. सरला सिंह 'स्निग्धा'
देश के रक्षक देश की शान, है अपने ये सैनिक महान। इनके बल पर अपनी चैन, इनके ही भरोसे है दिन रैन। कोई कितना ऊँचा हो जाए। इनतक कोई पहुँच न…
वो पहली मुलाक़ात - कविता - अमित अग्रवाल
याद है मुझे उससे वो पहली मुलाक़ात। मन में उमड़ते विचारो को परे रख, क़िस्मत पर छोड़ चुकी थी वो आगे के सारे हालात, याद है मुझे उससे वो पहली …
प्रेरणा - कविता - महेश "अनजाना"
एक योद्धा बार बार युद्ध हार कर थक सा गया। मायूस हो तम्बू में रात्रि पहर सोचता रहा। कैसे युद्ध को जीता जाए। नींद आई नहीं रात भर जागता…
मिटे भूख जब दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन है फुटपाथ पर, यहाँ वहाँ तकदीर। भूख वसन में भटकता, नीर नैन तस्वीर।।१।। भूख मरोड़े पेट को, हाथ ख़ोजते काम। दाता के नारों तले, शुष्क…
छुटकी - सत्य कथा - सुधीर श्रीवास्तव
दिसंबर 2020 के आखिरी दिनों की बात है। सुबह सुबह एक फोन कॉल आता है। नाम से थोड़ा परिचित ज़रूर लगा, परंतु कभी बातचीत नहीं हुई था, क्योंकि…
काश! ऐसा होता! - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
काश! ऐसा होता! चंद दिनों के लिए तुम हमारे... और हम तुम्हारे स्थान ले लेते... तुम हमारी तरह पशु और हम तुम्हारी तरह मानव बन जाते! विवेक …
सफलता के बहुतेरे रिश्तेदार - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
यह सत्य है की असफलता अनाथ होती हैं परंतु सफलता के बहुत रिश्तेदार बन जाते हैं। यूँ तो जब कोई व्यक्ति सफलता के शिखर पर होता है तो उसका क…
अब तो बिकानी श्याम - गीत - राहुल सिंह "शाहावादी"
आवती न कबौ श्याम, तोहरे दुआर पै। छवि मै तोहार गर, देखती न सांवरी।। कबौ को सुनाय तान, रिझायो हुतो श्याम तुम। दिल पै सलोने मोरे, लागे नै…
शब्द - कविता - प्रतिभा त्रिपाठी
आओ दोस्त, तुम्हें बेहतर बनाते हैं। कलम के जादू से, तुम्हें सजाते हैं। जाना तुझे जो, चन्द मुलाक़ातों से। नाम तेरा सब, शब्द "बताते ह…
ख़ुद से ख़ुद का प्रश्न - कविता - विनय विश्वा
मैं कौन हूँ, कैसा हूँ, क्यों हूँ? ये कौन पूछ रही है! किसका, किससे प्रश्न है? मन से, अंतर्तम से या फिर स्व शरीर से! किसका किससे! ये कौ…
अमरत्व - कविता - वर्षा श्रीवास्तव
देवता अमर होना चाहते थे, असुर भी मरना नहीं चाहते थे सृष्टि के संतुलन के लिए अच्छे को ज़िन्दा रहना था। आख़िर देवता अमर हो गये किन्तु मनुष…
ज़रा याद करो क़ुर्बानी - कविता - विनय "विनम्र"
भयानक मंज़रों के दौर से, गुज़रा हुआ अपना वतन, ज़ालिमों के ज़ुल्म से, लूटा हुआ है ये चमन, बस शिकस्तों पे शिकस्तों, का धरा पर अवतरण, कुछ शही…