सफलता के बहुतेरे रिश्तेदार - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

यह सत्य है की असफलता अनाथ होती हैं परंतु सफलता के बहुत रिश्तेदार बन जाते हैं।
यूँ तो जब कोई व्यक्ति सफलता के शिखर पर होता है तो उसका कंपटीशन सिर्फ खुद से होता है, लेकिन यह सच है कि जब कोई व्यक्ति सफल होता है तो क्या अपने क्या पराये सभी उस से प्रेम जताने लगते हैं। यह भी सत्य है कि सफल व्यक्ति को लोग अक्सर अपना रिश्तेदार सगा संबंधी बताते हैं।

समाज में अपने भाव बढ़ाने के लिए सफल लोगों को अपना ख़ास बताते हैं क्योंकि सफलता को  ही दुनिया सलाम करती है। यही कटु सत्य है।

असफल व्यक्ति की प्रतिभा को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, अक्सर नकार दिया जाता है।
सफलता के समय हर कोई आपके साथ खड़ा नज़र आता है और अपने आपको रिश्तेदार भी साबित कर देता है, परंतु संकट के समय बड़े से बड़ा रिश्तेदार साथ छोड़ देता है।
मगर ऐसा हमेशा नहीं होता है अपवाद स्वरूप कुछ सच्चे मित्र सच्चे रिश्ते भी होते हैं, जिनमें सच्चा प्रेम होता है। वह विपरीत परिस्थितियों में पूरी निष्ठा के साथ साथ देते हैं।
मगर ऐसा बहुत कम ही होता है। ज्यादातर मामलों में सफलता के ही रिश्तेदार होते हैं।

सफलता के साथ अनेक रिश्ते आप की देहरी पर अपनेपन की बारिश करने लगते हैं। अगर आप किसी ऊँचे पद पर नियुक्त हो गए तो रिसते रिश्ते भी महकने लगते हैं।

असफलता मनुष्य को इसलिए अवसाद की ओर से ले जाती है क्योंकि असफल मनुष्य अकेला रह जाता है। यह  जगत की नकारात्मक रीति है कि जब मनुष्य को सबसे ज्यादा अपने रिश्तेदारों व मित्रों की ज़रूरत होती है, तब वह नदारद मिलते हैं।

एक कहावत है कि चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं। यह कहावत मनुष्य के व्यवहार में चरितार्थ होती है।
परंतु यह भी सत्य है कि असफलता के समय व्यक्ति के धैर्य और साहस की परख तो होती ही है, साथ ही सच्चे रिश्तेदारों व मित्रों की भी परख भी हो जाती है।
सच्चे रिश्तेदार के धैर्य और साहस बढ़ाने हिम्मत देने के दो शब्द ही सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। लेकिन सफलता भी प्राप्त स्वयं के प्रयासों से ही प्राप्त होती है।

यह सच है कि सिर्फ़ सपनों से कुछ नहीं होता सफलता मेहनत से हासिल होती है। सफलता का कोई रहस्य नहीं है वह केवल अत्यधिक परिश्रम चाहती है। इंसान अपने जज़्बात और उतावलेपन से नहीं, अपनी मेहनत और दिमाग से सफल होता है। हाँ जीतने वाले अलग चीजें नहीं करते वह चीजों का अलग तरीके से करते हैं।

वैसे तो सफलता की परिभाषा भी व्यक्ति अपने हिसाब से गढ़ लेता है, वह जो चाहता है उसे प्राप्त कर ख़ुद को सफल मान लेता है, और उसके यही प्राप्ति उसे प्रसन्नता प्रदान करती है।

यूँ तो आत्मविश्वास भी सफलता का प्रमुख रहस्य माना जाता है। मेहनतकश लोग जब सफलता की मंज़िल पर पहुँचते हैं तो उनको ऐसे लोग भी अपना मानते हैं और अपना बताते हैं जो कभी उन्हें पहचानने से इनकार करते थे। तो हुई ना बात कि असफलता अनाथ होती है और सफलता के बहुत से रिश्तेदार बन जाते हैं। यही कटु सत्य है।

 सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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