कोसों दूर - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

मेरे गाँव का
रास्ता
कहीं सकरा
कहीं ऊँचा
कहीं कहीं
कंकड़ काँटे
और अद्रश्य
मोड़ जिन्हें
पार कर जाते है।
श्रम से
सरावोर
मजदूर
चौपाई गाता
ग्वाला
इन्ही मुस्कान मे
लोक गीत गाती
ग्राम बन्धुए
पर
सरकारी मुलाज़िम
और उनके बॉस
काग़ज़ पर
जीप से
दिखा देते है टूर।
और गाँव
का विकास
रह जाता है
कोसों दूर।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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