वफ़ा की राह में - ग़ज़ल - सुषमा दीक्षित शुक्ला

बुझ गया दीप उल्फ़त का जो जलाने से रहा,
सनम की याद का आलम तो मिटाने से रहा।

इस कदर घायल रही उल्फ़त वफ़ा की राह में,
छुप गया यार मेरे पास वो आने से रहा।

फ़क़त कितना निभाया है इबादत इश्क को,
मेहरबां होके वो मुझको तो बुलाने से रहा।

हर कदम ढूंढा किये रुख़सार पे सज़दे किए,
थक चुका दिल ये कोई गीत गाने से रहा।

इश्क़ के दरिया में डूबे होश खोए सुष सनम,
मिट चुके दिल को वो दिलासा दिलाने से रहा।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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