एक योद्धा
बार बार
युद्ध हार कर
थक सा गया।
मायूस हो तम्बू में
रात्रि पहर सोचता रहा।
कैसे युद्ध को जीता जाए।
नींद आई नहीं
रात भर जागता रहा।
और सुबह हो गई।
उठने में कोई उत्साह
नज़र नहीं आया।
सोच में डूबा
योद्धा की नज़र
दीवार पर
एक चींटी पर पड़ी।
अपनी काया से बड़ी
गुड़ की धेली को लेकर
बार बार चढ़ती
और गिर पड़ती।
चींटी का प्रयास
लगातार जारी रहा।
और अन्त में
वह दीवार चढ़ गई
गुड़ की धेली लेकर।
योद्धा का हौसला
चींटी के अथक प्रयास
देख कर बढ़ा।
वह उठा
अपनी सेना के पास
पहुँचा और गरज कर बोला।
एक छोटी चींटी का हौसला
तब तक नहीं कम होता
जब तक अपने हिस्से की
गुड़ की ढेली लेकर
अपनी मांद में
पहुँच नहीं जाती।
फिर हम तो योद्धा हैं।
हमें भी जीत मिलेगी।
बस हौसला कम न हो।
चींटी की प्रेरणा ही
हमारी जीत का मंत्र है।
महेश "अनजाना" - जमालपुर (बिहार)