बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग - गीत - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'

बरगद और  बुजुर्ग  तुल्य  जग,
निःस्वार्थ छाँव जीवन होते   हैं।
आश्रय  नवपादप  बाल   युवा,
श्रान्त मनुज मन  राहत समझो। 

अनुभव जीवन अतिदीर्घ वयस,
झंझावत    झेले      होते     हों।
विविध   आँधियों  तूफानों   को, 
हर    बरगद    बूढ़े      होते   हैं। 

छत  बनकर  वे अनूभूति  गगन,
पीढ़ी  दर   पीढ़ी    देखे       हैं।
करुणा  ममता सदय  मूर्ति  बन,
बरगद    बूढ़े   नित    रहते    हैं।

पशु  पक्षी  आश्रय  बरगद  तरु,
घर   बुजुर्ग   मुखिया    होते  हैं।
नीति  रीति  अनुशासक  वाहक,
सहिष्णु   धीर  प्रकृति  होते   हैं। 

शान्ति प्रकृति गंभीर विशाल मन,
विपदा    उपचारक     होते     हैं।
प्रीति नीति  पथ वाहक   युवजन,
रीत     मीत     बूढ़े     होते     हैं।

पा यौवन   मद  युवा   अवहेलित,
क्षमाशील  नित    वर   देते     हैं।
काँट   छाँट   रह  विपदा  सहकर,
फिर  भी  बरगद शरणागत     हैं। 

नित   पूजनीय   बरगद      बुजुर्ग,
परहित  जो     जीवन    जीते   हैं।
रखें ध्यान  कर   सेवा   तन    मन,
स्नेह    दुआ  रस    हम  पीते    हैं। 

डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली

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