डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली
बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग - गीत - डॉ. राम कुमार झा 'निकुंज'
बुधवार, जनवरी 20, 2021
बरगद और बुजुर्ग तुल्य जग,
निःस्वार्थ छाँव जीवन होते हैं।
आश्रय नवपादप बाल युवा,
श्रान्त मनुज मन राहत समझो।
अनुभव जीवन अतिदीर्घ वयस,
झंझावत झेले होते हों।
विविध आँधियों तूफानों को,
हर बरगद बूढ़े होते हैं।
छत बनकर वे अनूभूति गगन,
पीढ़ी दर पीढ़ी देखे हैं।
करुणा ममता सदय मूर्ति बन,
बरगद बूढ़े नित रहते हैं।
पशु पक्षी आश्रय बरगद तरु,
घर बुजुर्ग मुखिया होते हैं।
नीति रीति अनुशासक वाहक,
सहिष्णु धीर प्रकृति होते हैं।
शान्ति प्रकृति गंभीर विशाल मन,
विपदा उपचारक होते हैं।
प्रीति नीति पथ वाहक युवजन,
रीत मीत बूढ़े होते हैं।
पा यौवन मद युवा अवहेलित,
क्षमाशील नित वर देते हैं।
काँट छाँट रह विपदा सहकर,
फिर भी बरगद शरणागत हैं।
नित पूजनीय बरगद बुजुर्ग,
परहित जो जीवन जीते हैं।
रखें ध्यान कर सेवा तन मन,
स्नेह दुआ रस हम पीते हैं।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर