मिटे भूख जब दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जीवन है फुटपाथ पर, यहाँ वहाँ तकदीर। 
भूख वसन में भटकता, नीर  नैन तस्वीर।।१।।

भूख मरोड़े पेट को, हाथ ख़ोजते काम।
दाता के नारों तले, शुष्क नैन  अवसान।।२।।

जीवन के  मँझधार  में, भूख  प्यास संत्रास।
व्योम तले है आसियां, वसन गात्र आभास।।३।।

छू  लो   उन्नति   शिखर   को, चाहे   मंगल  सोम।
भूख अनल जबतक जले, बिना वसन छत व्योम।।४।।

उन्नत    हों   अट्टालिका, बड़े  सड़क  निर्माण।
मिटे भूख जब दीन का, तभी समझ कल्याण।।५।।

भूख वसन आहत प्रजा, सहे दीन दुर्भाव।
गर्मी  सर्दी वारिशें, अपमानित मन  घाव।।६।।

भूख प्यास आहत अधर, पलभर दो मुस्कान। 
साथ  खड़े  हैं  आपदा, बने   मीत   भगवान।।७।।

भूख प्यास आहत अधर, पलभर दो मुस्कान। 
साथ  खड़े  जो आपदा, बने   मीत  भगवान।।८।।

निर्धन कोल्हू बैल सम, कर मिहनत निशि रैन।
वसनहीन  तन  भूख  से, क्षत  विक्षत  है  चैन।।९।।

दीन  हीन  यायावरित, भूख  प्यास  संघर्ष।
व्योमांचल बन गेह नित, अर्धनग्न तनु हर्ष।।१०।।

पेट पृष्ठ बन एक सम, नयन गह्वरित गर्त।
कंपित  कर याचन  बढ़े, निर्धनता आवर्त।।११।।

लावारिस पशुतुल्य नित, अवहेलित  सरताज।
आर्त गात्र अवसाद बन, विचरित देश समाज।।१२।।

जीवन   है  बस  वेदना, शोषण  है उत्कर्ष।
आर्तनाद भर सिसकियाँ, गरलपान संघर्ष।।१३।।

भूख बिना भोजन वृथा, ग्रसित समझ तन रोग।  
भजन बिना जीवन वृथा, भज  रे मन हरि योग।।१४।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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