हम भारत में जन्मे
और भारत मेरे कण कण में
हवा पानी खाना मिला
बचपन धूप बरसात में खिला।
प्रकृति से ना शिकवा गिला
भेद भाव ना इससे मिला
आज बारिशों में सबने भींगा
पर किसी ने करी न इसकी निंदा।
अजीब किसी ने खेल खिलाया
लोगों संग मै दौड़ लगाया
मैंने दौड़ में पहला आया
पर दलित कहकर हमें भगाया।
एक प्रश्न अब मन में आया
क्यों तुमने है हमें रूलाया
नीच कहकर हमें भगाया
जाति आख़िर कैसे बनाया।
हम इंसान पैदा हुए
पर किसने हमें दलित बनाया
ऊँच नीच की घटिया रीत
आखिर किस स्वार्थी ने चलाया।
बताओ हम नीच है आख़िर कैसे
मेरी लहू भी तुम्हारे जैसे
भेद भाव यदि करोगे ऐसे
फिर भारत विकास करेगा कैसे।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)