संदेश
पतंग और डोर - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
पौष मास नववर्ष मुदित मन, पर्व मकर संक्रान्ति मनाएँ। खुशियों के मकरन्द बाँटकर, जीवन व्योम पतंग उड़ाएँ। सतरंग चार…
जय हनुमान - कविता - रमाकांत सोनी
रामायण की कहूँ कहानी, राम भक्त हनुमान की, जिनके हृदय में बसते हैं, राघव माता जानकी। भूख लगी हनुमत को जब, जाकर माता को यूं बोले, हल…
मेरी तन्हाई है - ग़ज़ल - पारो शैवलिनी
हर तरफ़ ग़म ही ग़म रुसवाई ही रुसवाई है। तेरी यादें हैं, मैं हूं और मेरी तन्हाई है।। चांद नहीं आता है नज़र मुझे इस चांदनी में। चांदनी रा…
बसंत - कविता - अनिल बेधड़क
सूखे पत्ते सूखी डाली, फल विहीन कैसी हरियाली। कलियाँ सूख गईं डालो पर, आँसू फूलों के गालों पर। फिर भी जश्न मनाता माली, खुशियाँ भी लगती ह…
ये अजीब ज़िन्दगी - कविता - प्रवीन "पथिक"
मुझे पग-पग पर मेरी किस्मत को, ठोकर लगती है। सह जाता मैं, उस शूल समझकर। बढ़ जाता उसी रास्ते में, ज़िन्दगी का कोई भूल समझकर। अन्तःकरण मे…
तुम सुनो रुको और ठहरो - कविता - आर एस आघात
तुम सुनो रुको और ठहरो और गौर से सुनो मेरी एक बात जो मुझे तुमसे कहनी है। आपको आज मुझे सुनना तो पड़ेगा बहुत दिन हो गए मुझे तुम्हारी बात…
ज़िंदगी तेरे रंग बड़े अजीब - कविता - विजय गोदारा गांधी
तुम्हारे ही दिल मे बैठा है वो तुम जिसे ढूंढते मंदिर की पुजा, मस्जिद की अजीरो में। सियासत आने से पहले सब इंसान थे इसी ने बांट दिया सबको…
माँ - कविता - मंजु यादव "ग्रामीण"
आज कलम कुछ आतुर सी है, माँ क्या है बतलाने को। अक्षर के कुछ मोती लायी, कागज पर बिखराने को। अंतःकरण मचल उठा है, मै भी बाहर आ जाऊँ। श्रध्…
मकर संक्रान्ति - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
पौष मास स्वागत करूँ, सूर्य करे धनु त्याग। मकर राशि पावन अतिथि, महापर्व अनुराग।।१।। प्रथम साल त्यौहार है, मकर संक्रान्ति नाज़। सदा चतु…
मकर संक्रान्ति - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मकर संक्रान्ति आज फिर से है आई। लोहड़ी व पोंगल की लख लख बधाई। एकता का मधुर ये है संदेश लाई। जो रसोई घरों में है खिचड़ी पकाई। फिर महकने ल…
वतन से जुड़ो - कविता - नमन शुक्ला "नया"
आज तक तुम जिये हो, कलह-स्वार्थ में, अब तनिक राष्ट्र के संगठन से जुड़ो। जाति, भाषा, धरम, प्रान्त सब भूल कर, हिन्द की पूज्य धरती, वतन से…
नदी जीवन है - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
अंधाधुंध आधुनिकता की तुम वो बनावट रहने दो, बहने दो जल को तुम जो वो रूप धरा का रहने दो, ताल तलैया नहर जो भैया पावन नीर तो बहने दो, अ…
रोटी, कपड़ा और मकान - कविता - रीमा सिन्हा
मख़मली पर्दों के पीछे भी एक और जहान है, रो रहे हैं सब वहाँ, न रोटी कपड़ा और मकान है। रूधिर जिनके सूख गये, पीते हलाहल हर रोज़ हैं, शर क्या…
मुसाफ़िर - ग़ज़ल - अज़हर अली इमरोज़
क्यों मिलने की बन्दिश में रहते हैं, हम तिलस्म के लरजिश में रहते हैं। ना जाने कितनों ने घेरा मुझको अब तो खुद की गर्दिश में रहते हैं। स…
मैंने देखा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
मैंने देखा, लोगों को कोरी सदभावना के दो बोल बोलते और खीसे निपोरते, एक अफ़सर, जो लोगों मे अपनत्व जताकर अर्थ सोपान करता फिर कुटिल मन से म…
हे जगत जननी! तुझे प्रणाम - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
गोद में बालक है, कर में बालटी, या सर में डलिया खाद गोबर, या है गट्ठा लकड़िया या घास भारी, सर पे इतना बोझ, उसके रोज़ है। पर न कम चेहरे…
मीत - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
कृष्ण सुदामा मित्रता, स्नेहिल निर्मल धार। मुरलीधर मनमीत बन, कृष्ण पार्थ उपहार।।१।। सार्थकता जीवन मनुज, बने मीत नवनीत। भक्ति प्रेम रसमा…
हे! अन्नदाता - कविता - आर सी यादव
अरूणोदय के साथ ही उदित होती है ये कहानी जो चलती रहती है निरन्तर सूर्यास्त के बाद भी। घनघोर घटाओं में क्रूर क्रंदन करती चपला तुम अडिग…
अमावस की रात - गीत - संजय राजभर "समित"
पहले प्यार की पहली, अपनी मुलाक़ात थी।। काली-काली भयावह! अमावस की रात थी।। इंतज़ार की घड़ी में, हर पल बेचैनी थी। बस एक झलक के लिए, नज़रें…
माँ भागीरथी वेदना - कविता - विनय "विनम्र"
है, जय करना बेकार तेरा, अब कचरे का मजधार मेरा, मैं चैन से, स्वर्ग में रहती थी, देवों के अंतस बहती थी, वेदों का होता पाठ जहाँ, सतय…
सूरजमुखी - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
सूरज की ओर मुँह किए खिल रहे, पीले-पीले सुंदर सूरजमुखी के फूल। भोर की पहली किरण निकलते ही, खिलखिला उठते सूरजमुखी के फूल। शरद रातों में …
स्वामी विवेकानंद - कविता - रमाकांत सोनी
महानायक महा चिंतक, धर्मगुरु समाज सुधारक, केसरिया बाना में दमके, विवेकानन्द साफ़ा धारक। विश्व धर्म सम्मेलन में दिलाकर भारत को एक नई पहच…
सफ़र-ए-ज़िन्दगी - कविता - तेज देवांगन
ज़िंदगी के सफ़र में, मैं कुछ तो खोता जा रहा हूँ, मंज़िले पाकर भी, अपनों से दूर होता जा रहा हूँ। जितनी कदम बढ़ाए, उतनी बड़ी मनोरथ, उतनी म…