मैंने देखा - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

मैंने देखा,
लोगों को
कोरी सदभावना
के दो बोल
बोलते और
खीसे निपोरते,
एक अफ़सर,
जो लोगों
मे अपनत्व जताकर
अर्थ सोपान
करता फिर
कुटिल मन
से मुस्कुराता।
कोसो पार कर
गया गरीबी रेखा।
देखा मैंने
अभावो के
चिथड़ों मे जकड़ा 
एक लेखक को,
देखा भाई को
भाई की
जड़ खोदने और
वेगानो से
प्रगाढ़ प्रेम
जोड़ते।
नवयुवक
नवयुवती को
कह कहे लगाते,
कसमे वादो की
दौलत के परिपेक्ष्य
मे ढ़लते देखा।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos